डीएम डॉ. आशीष चौहान की एक अभिनव पहल, पहाड़ के लिए वरदान साबित होगा चीड़, पर्यावरण संरक्षण के साथ बनेगा आर्थिकी का जरिया

by intelliberindia

डीएम डॉ. आशीष चौहान के प्रयास से चीड़ बदल रहा तकदीर, ये हैं फायदे

पौड़ी : जिलाधिकारी पौड़ी गढ़वाल डॉ. आशीष चौहान की देश के तेज तर्रार आईएएस अधिकारियों में गिनती होती हैं । डीएम डॉ. आशीष चौहान का सरल स्वभाव उन्हें आमजन से जोड़ता हैं । आईएएस डॉ. आशीष चौहान अपनी कुशल व्यवहार एवं बेहतरीन कार्यशैली के चलते आमजन में काफी लोकप्रिय हैं । डीएम डॉ. आशीष चौहान की पहल पर स्वयं सहायता समूह और वन पंचायत के द्वारा संग्रहित चीड़ के बीज को 500 रुपए प्रति किलोग्राम किया जाएगा क्रय। डीएम डॉ. आशीष चौहान एक रचनात्मक और अभिनव प्रयोग करने वाले प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। चारधाम पौराणिक गंगा पथ यात्रा, बर्ड वाचिंग, चौरासी कुटिया द गंगा फेस्टिवल और पहाड़ी अंजीर को बढ़ावा देने के पश्चात आज उन्होंने अगरोड़ा स्थित ग्राम सभा मरोड़ के पाली गांव में स्थलीय निरीक्षण के दौरान चीड़ के बीज को महत्वपूर्ण संसाधन में बदलने का बीड़ा उठाते हुए उसके बीज से ग्रामीणों के माध्यम से फ्रूटस प्राप्त किए तथा इस दौरान परियोजना प्रबंधक रीप को निर्देशित किया कि स्वयं सहायता समूह और वन पंचायत के माध्यम से संग्रहित चीड़ के बीच को 500 रूपये प्रति किलोग्राम में क्रय किया जाए।

जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने कहा कि इससे पाइन नट्स फ्रूट्स और पाइन सीड ऑयल तैयार किया जाए। इसके लिए जिलाधिकारी ने सतपुली के बिलखेत में रीप परियोजना के अंतर्गत ज्योति आजीविका स्वयं सहकारिता को इसकी यूनिट स्थापित करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 22 लाख रुपए की धनराशि भी जारी कर दी है। इस इस दौरान जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान से पाली गांव के स्थानीय लोगों ने बातचीत के दौरान कहा कि चीड़ को इस तरह संसाधनों में बदलने से एक ओर स्थानीय लोगों की आर्थिकी मजबूत होगी तथा दूसरी ओर कुछ हद तक चीड़ के जंगल पर अंकुश भी लगेगा, जिससे जंगल में लगने वाली दावानल में भी कमी आएगी और चीड़ के जंगल में कमी आने से अन्य प्रजातियों को पनपने का अवसर भी मिलेगा तथा बाँझ, देवदार, बूरान्स, मरु जैसे प्रजातियों के वृक्ष अधिक पनपेंगे। जिससे हरियाली अधिक होगी। लोगों ने जिलाधिकारी की इस पहल का स्वागत किया और प्रशंसा करते हुए कहा कि अगर यह प्रयास ठीक से फलिभूत हुआ तो आने वाले समय में लोगों को इसका व्यापक लाभ मिलेगा।

इस दौरान रीप परियोजना प्रबंधक कुलदीप बिष्ट ने कहा कि चीड़ के बीज से पाइन नट्स फ्रूट और पाइन सीड ऑयल प्राप्त करने के पश्चात सेकेंडरी उत्पादों के रूप में साबुन और स्क्रब जैसे उत्पाद भी तैयार हो सकेंगे। साथ ही इस पर और भी रिसर्च किया जाएगा जिससे अन्य उपयोगी उत्पादों को भी तैयार किया जा सके।

IAS डॉ. आशीष चौहान के प्रयास लाए हैं रंग, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में की थी सराहना

पहाड़ी अंजीर यानी बेड़ू से बने उत्पादों को बाजर में उतारने के लिए पौड़ी जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान की कवायद रंग लाई है। पहाड़ के जंगली फल बेड़ू को पहचान दिलाने के लिए जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान के प्रयासों की साराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार पौड़ी जिले में प्रतिवर्ष छह सौ कुन्तल बेडू के उत्पादन की क्षमता है। इसको अवसर में बदलकर अच्छी आमदनी की जा सकती है। वर्तमान में रीप परियोजना के तहत 36 गांवों की पांच सौ पचास महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से बेडू का संकलन कर रही हैं। जिलाधिकारी ने कहा कि बेडू से उत्पादों बनाने का कार्य जनपद मुख्यालय पौड़ी से शुरु किया गया है। विभिन्न उत्पाद देहरादून और कौड़ियाला के दो बड़ा होटलों के साथ ही हिलांश स्टोर सहित चारधाम यात्रा मार्गों पर बने अन्य स्टोरों के लिए जैम और चटनी के उत्पाद भेजे जा रहे हैं।

पाइन सीड प्रसंस्करण इकाई प्रस्ताव

पहाड़ी इलाकों में लगभग सभी जगहों पर चीड़ के ऊंचे ऊंचे पेड़ पाये जाते हैं। आयुर्वेद में इस पेड़ को सेहत के लिए बहुत उपयोगी माना गया है. चीड़ के पेड़ की लकडियां, इससे निकलने वाले तारपीन के तेल और चिपचिपे गोंद का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. चीड़ के पेड़ से निकलने वाले गोंद को गंधविरोजा नाम से जाना जाता है।

हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाले चीड़ के पेड़ की लम्बाई 30-35 मीटर तक की होती है. अधिकांश लोग इसकी लम्बाई और पत्तियों के आकार से ही इसे पहचान लेते हैं. इसका तना गहरे भूरे रंग का खुरदुरा गोल आकर में होता है. इसके पत्ते 3 के गुच्छे में होते हैं जिनकी लम्बाई 20-30 सेमी होती है. इसके फल देवदार के फल जैसे ही होते हैं लेकिन ये आकार में कुछ बड़े, शंक्वाकार, पिरामिड आकार के नुकीले होते हैं। मार्च से नवम्बर के बीच में इसमें फल और फूल निकलते हैं। चीड़ का वानस्पतिक नाम Pinus Roxburghii Sargent(पाइनस् रॉक्सबर्घियाई) तथा यह Pinaceae (पाइनेसी) कुल का पौधा है। भारतीय हिमालय में चीड़ की तीन प्रजातियाँ जंगली पाई जाती हैं – पाइनल रॉक्सबर्गी, पाइनस वालिचियाना, पाइनस जेरार्डियाना।

चीड़ के औषधीय गुण (Medicinal Properties of Pine)

  • चीड़ कटु, मधुर, तिक्त, उष्ण, लघु, स्निग्ध, कफवातशामक, कान्ति दायक, दुष्टव्रण शोधक, वृष्य, दीपन तथा कोष्ठशोधक होता है।
  • यह कर्णरोग, कण्ठरोग, अक्षिरोग, स्वेद, दाह, कास, मूर्च्छा, व्रण, भूतदोष कृमि, त्वक्-विकार, शोफ, कण्डू, कुष्ठ, अलक्ष्मी, व्रण, यूका, ज्वर, दौर्गन्ध्य तथा अर्शनाशक होता है।
  • चीड़ का तैल कटु, तिक्त, कषाय, दुष्टव्रण विशोधक, शुक्रमेह, कृमि, कुष्ठ, वातविकार तथा अर्श नाशक होता है।
  • अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से, पित्तविकार तथा भम को उत्पन्न करने वाला होता है।
  • इसका काष्ठ सर्पदंश, वृश्चिकदंश तथा शारीरिक दाह में लाभप्रद होता है।

उत्तराखण्ड में चीड़

उत्तराखण्ड के कुल क्षेत्रफल का 71.05% वन क्षेत्र (37999.60 square km) है जिसमें से 27.06% प्रतिशत चीड़ का वन क्षेत्र है। जनपद पौड़ी में चीड़ का कुल वन क्षेत्रफल लगभग 35161.1 है. है। चीड़ उत्तराखण्ड के समस्त जनपदों के वन क्षेत्र में पाया जाता है व इसका क्षेत्रफल लगातर बढ़ता जा रहा है। चीड़ उत्तराखण्ड में वनाग्नि के लिए एक महत्वूपर्ण कारक भी है तथा अधिकतर वनाग्नि की घटनायें चीड़ के जंगल से प्रारंभ होकर अन्य मिश्रित वनों को भी अपने आगोश में ले लेती है।

चीड़ व चीड़ के उत्पादों का उपयोग

उत्तराखण्ड में चीड़ के पेडों से लीसा, पिरूल, इमारती लकड़ी, जलावन लकड़ी, जानवरों के लिए बिछोने आदि के लिए चीड़ के पेड़ अथवा उसके विभिन्न भागों का उपयोग किया जाता रहा है। इसके साथ ही पिरूल से बिजली उत्पादन के कुछ प्रोजेक्ट पाइलेट के रूप में संचालित किये गये। परंतु चीड़ के बीजों के किसी प्रकार के उपयोग अथवा प्रसंस्करण की दिशा में कोई विशेष पहल नहीं की गई। जबकि पाइन नट्स व उसके विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पादों जैसे: तेल, स्क्रब व साबुन आदि की काफी मांग हैं तथा यह उत्पाद बाजार में काफी उच्च मूल्य पर विक्रय होते हैं। उत्तराखण्ड के ग्रामीण अंचलों में पारम्परिक रूप से स्थानीय निवासियों द्वारा चीड के बीज को भूनकर खाया जाता है।

पाइन सीड से प्रसंस्करण की संभावनायें

पाइन सीड का उपयोग पूरे विश्व में विभिन्न प्रकार के खाद्य, तेलीय, चिकित्सकीय उपयोग तथा कॉस्मेटिक उत्पादों को तैयार करने में किया जाता है। इसके साथ ही पाइन सीड को नट्स के रूप में भी विक्रय व उपयोग किया जाता है। भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम में पाइन के सीड का विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पादों को बनाये जाने में उपयोग किया जाता है। इससे चीड़ वहां के स्थानीय निवासियों के लिए आय के एक अतिरिक्त स्रोत का कार्य भी करता है।

पाइन सीड प्रसंस्करण इकाई की स्थापना व संचालन

जनपद पौड़ी में चीड़ का कुल वन क्षेत्रफल लगभग 35161.1 है. है जिसमें आरक्षित वन क्षेत्र व वन पंचायत क्षेत्र शामिल है। जनपद पौड़ी में चीड़ की पर्याप्त उपलब्धता तथा बाजार में चीड बीज व उसके प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग को देखते हुए चीड़ के बीज के प्रसंस्करण इकाई की पर्याप्त संभावनायें हैं। इससे स्थानीय निवासियों को स्वरोजगार व आजीविका के अतिरिक्त साधन भी प्राप्त होंगे। जनपद पौड़ी में चीड के पर्याप्त वन क्षेत्र तथा बाजार में चीड़ के बीजों के प्रसंस्कृत उत्पादों की मांग के मध्येनजर जनपद पौड़ी में पाइन सीड प्रसंस्करण इकाई की स्थापना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा रहा है। इस प्रसंस्करण इकाई का संचालन ग्रामीण उद्यम वेग वृद्धि परियोजना अन्तर्गत विकासखण्ड कल्जीखाल में गठित ज्योति आजीविका स्वायत्त सहकारिता, बिलखेत द्वारा किया जायेगा।

पाइन सीड के प्रसंस्करण से बनने वाले उत्पाद

  1. पाइन सीड ऑयल
  2. सीड नट्स
  3. कॉस्मेटिक उत्पाद
  4. साबुन
  5. बेकरी उत्पाद में उपयोग

प्रसंस्करण इकाई हेतु पाइन सीड (Raw Material) का एकत्रीकरण एवं क्रय प्रक्रिया

पाइन सीड प्रसंस्करण इकाई हेतु रॉ मैटेरियल का एकत्रीकरण एवं क्रय सहकारिता द्वारा वन पंचायतों के माध्यम से किया जायेगा। जिसमें वन पंचायत द्वारा अपने क्षेत्र में चीड के फल का एकत्रीकरण कर उनका बीज निकालने का कार्य किया जायेगा। इससे जहां एक ओर वन पंचायतों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा वहीं चीड़ के फल एवं बीज निकालने के कार्य से स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा।

प्राजेक्ट आउटकम

  • चीड स्थानीय निवासियों की आजीविका के एक अतिरिक्त माध्यम बनेगा।
  • स्थानीय युवाओं को चीड़ फल तथा बीज निकालने के कार्य से रोजगार प्राप्त होगा।
  • वन पंचायतों को चीड चीड़ फल तथा बीज निकालने के कार्य से अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी।
  • चीड़ के फलों से जंगलो में वनाग्नि के प्रसार में कमी आयेगी तथा कम वनक्षेत्र वनाग्ति की चपेट में आयेंगे।
  • चीड़ के बीज व उसके उत्पादों के विशिष्ट औषधीय गुणों वाले उत्पाद लोगों को बाजार में उपलब्ध होंगे।
  • महिला फैडरेशन द्वारा संचालित प्रसंस्करण इकाई में स्थानीय महिलाओं व युवाओं को रोजगार प्राप्त होगा।

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