अभूतपूर्व सफलता : डेयरी एवं खाद्य उद्योगों को बदलने के लिए एक-चरणीय दूध वसा अलगाव सेट
रूडकी : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की (आईआईटी रूड़की) की एक शोध टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में क्रॉस-फ्लो माइक्रोफिल्ट्रेशन का उपयोग करके गोजातीय दूध से आकार के आधार पर वसा ग्लोब्यूल्स को एक-चरण में अलग करने का प्रदर्शन किया गया है। पहली लेखिका (पीएचडी छात्रा: आयुषी कपूर) को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पुरस्कार प्रदान किया गया है, चूँकि, उनके शोध पत्र को मौखिक प्रस्तुति के लिए चुना गया है, जिसे वह दिसंबर में पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में मेम्ब्रेन सोसाइटी ऑस्ट्रेलेशिया सम्मेलन के आगामी वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत करेंगी।
दूध से बायोएक्टिव घटकों को चुनिंदा रूप से अलग करने और केंद्रित करने की क्षमता व खाद्य सुदृढ़ीकरण में इसके आगे के अनुप्रयोग के कारण दूध माइक्रोफिल्ट्रेशन ने डेयरी उद्योग में ध्यान आकर्षित किया है। ऐसा ही एक यौगिक है दूध वसा ग्लोब्यूल्स, संभावित स्वास्थ्य लाभ वाला एक बायोएक्टिव घटक, जो संरचनात्मक और कार्यात्मक क्षति, मेम्ब्रेन फॉस्फोलिपिड हानि, लंबे समय तक प्रसंस्करण समय का अनुभव करता है, और इसकी वर्तमान बहु-चरण पृथक्करण प्रक्रिया के कारण उच्च पुनर्प्राप्ति लागत से गुजरता है।
शोध टीम में आयुषी कपूर, जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी रूड़की; सौरव दत्ता, एमजेन बायो प्रोसेसिंग सेंटर, केक ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट,हेनरी ई. रिग्स स्कूल ऑफ एप्लाइड लाइफ साइंसेज, क्लेरमोंट; गौरव गुप्ता, औद्योगिक एवं प्रबंधन अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी कानपुर; अजय विश्वकर्मा, पॉलिमर एवं प्रोसेस अभियांत्रिकी विभाग,आईआईटी रूड़की, सहारनपुर परिसर; अविनाश सिंह, डेयरी प्रौद्योगिकी विभाग, सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, प्रयागराज; सुजय चट्टोपाध्याय, पॉलिमर एवं प्रोसेस अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी रूड़की, सहारनपुर परिसर; किरण अंबतिपुडी, जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी रूड़की ।
पहली लेखिका, जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी रूड़की में पीएचडी छात्रा, आयुषी कपूर ने इस अध्ययन के शोध परिणाम पर प्रकाश डाला, “हमारे अध्ययन ने एक-चरणीय प्रक्रिया विकसित की है जो न केवल कम दबाव पर कुशलता से काम करती है बल्कि अलग वसा ग्लोब्यूल्स की संरचना को सफलतापूर्वक संरक्षित करती है। वर्तमान दूध वसा ग्लोब्यूल पृथक्करण तकनीक में 4-5 चरण शामिल होते हैं जो इसे अधिक समय लेने वाली और महंगी प्रक्रिया बनाता है। इसके अलावा, अतिरिक्त प्रसंस्करण कदम दूध के वसा ग्लोब्यूल्स को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे उनके पोषण गुणों में कमी आती है। जबकि, हमने जो प्रक्रिया विकसित की है वह बिना किसी पूर्व-प्रसंस्करण के सीधे कच्चे दूध से अलग हो जाती है, जिससे औद्योगिक स्तर पर लागू होने पर समय, ऊर्जा और धन की बचत होती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की की अनुसंधान टीम ने गाय और भैंस के दूध से छोटे, स्वास्थ्य-लाभकारी दूध वसा ग्लोब्यूल्स को उनके आकार के आधार पर अलग करने, उनके संरचनात्मक और पोषण गुणों को संरक्षित करने के लिए एक अभूतपूर्व एक-चरणीय प्रक्रिया विकसित की है। यह नवाचार संचालन को सुव्यवस्थित करता है, समय, ऊर्जा और संसाधनों की बचत करता है, और इसमें दूध में वसा की मात्रा को कम करने की क्षमता है, जिससे यह सभी आयु समूहों के उपभोग के लिए उपयुक्त हो जाता है। पृथक वसा ग्लोब्यूल्स का उपयोग शिशु फार्मूला सहित कार्यात्मक खाद्य सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है, और खाद्य और दवा उद्योगों में विभिन्न उच्च मूल्य वाले उत्पादों के लिए कच्चे माल के रूप में काम किया जा सकता है, जो इन क्षेत्रों को महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। यह अध्ययन हाल ही में पृथक्करण और शुद्धिकरण प्रौद्योगिकी जर्नल में प्रकाशित हुआ था, और संस्थान ने पहले ही इस प्रक्रिया के लिए एक पूर्ण भारतीय पेटेंट दायर कर दिया है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने शोधकर्ताओं को हार्दिक बधाई देते हुए कहा, “इस शोध के परिणाम वसा ग्लोब्यूल अलगाव में आगे की प्रगति के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगे और भविष्य के अनुसंधान और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए मार्ग खोलेंगे।” दूध वसा ग्लोब्यूल पृथक्करण के इस अभिनव दृष्टिकोण में डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में क्रांति लाने की क्षमता है, जो दूध वसा ग्लोब्यूल्स के पोषण गुणों को संरक्षित करने के लिए एक अधिक कुशल व लागत प्रभावी तरीका प्रस्तुत करता है।