उत्तराखंड: 703 नौकरियों पर मंडराया खतरा, ये गलती पड़ी भारी

by intelliberindia

नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में मिलने वाले 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को लेकर सरकार के प्रार्थनापत्र को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आदेश को हुए 1403 दिन हो गए हैं। इतने दिन बाद सरकार संशोधित प्रार्थनापत्र पेश कर रही है, अब इसका कोई आधार नहीं है। सरकार की ओर से देर से प्रार्थनापत्र दाखिल करने का कोई साफ कारण भी नहीं दिया गया। यह प्रार्थनापत्र लिमिटेशन एक्ट की परिधि से बाहर जाकर पेश किया गया था, जबकि इसे आदेश होने के 30 दिन के भीतर पेश किया जाना था।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार राज्य आंदोलनकारियों को 2004 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के लिए दो शासनादेश लाई थी। पहला शासनादेश लोक सेवा आयोग से भरे जाने वाले पदों के लिए, जबकि दूसरा लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर के पदों के लिए था।

शासनादेश जारी होने के बाद राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया गया। 2011 में हाईकोर्ट ने इस शासनादेश पर रोक लगा दी थी। बाद में हाईकोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करके 2015 में इस पर सुनवाई की। खंडपीठ में शामिल दो न्यायाधीशों ने आरक्षण दिए जाने व नहीं दिए जाने को लेकर अलग-अलग निर्णय दिए। इसके बाद मामले को अन्य न्यायाधीश को भेज दिया गया। जब यह मामला सुनवाई के लिए दूसरी कोर्ट को भेजा गया तो वहां आरक्षण को असांविधानिक करार दिया गया।

साथ ही कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी सेवा के लिए समस्त नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए आरक्षण दिया जाना असांविधानिक है। 2015 में कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पारित किया और इस विधेयक को राज्यपाल के हस्ताक्षरों के लिए भेजा गया लेकिन राजभवन से यह विधेयक वापस नहीं आया।

अब जब सरकार ने राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर वाले शासनादेश में शामिल प्रावधान के संशोधन के लिए प्रार्थना दाखिल किया तो कोर्ट ने देरी से दाखिल होने के आधार पर इसे निरस्त कर दिया। इस संबंध में राज्य आंदोलनकारी अधिवक्ता रमन साह ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी भी विचाराधीन है। फिलहाल वर्तमान हालात में आयोग की परिधि से बाहर के पदों पर 730 लोगों को नौकरी दी गई है जो खतरे में नजर आ रही है।

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