पिथौरागढ़: उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां कदम-कदम पर मंदिर हैं। चारधाम के साथ ही कई ऐसे अन्य मंदिर भी हैं, जिनका अपना खास महत्व है। समय-समय पर उत्तराखंड में कई जगहों पर गुफाएं भी मिलती रही हैं। ऐसी ही एक और गुफा पिथौरागढ़ जिले में मिली है, जो उत्तराखंड में मिली अब तक की सभी गुफाओं में सबसे बड़ी बताई जा रही है। इस गुफा के बारे में जानकारी जुटाने के लिए पुरातत्व विभाग भी जुट गया है। आने वाले समय में यह गुफा पर्यटन को बड़ा केंद्र बन सकती है। खास बात यह है कि गुफा के भीतर ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है।
गुफा शैल पर्वत क्षेत्र की गुफाओं वाली घाटी गंगोलीहाट में प्रसिद्ध सिद्धपीठ हाटकालिका मंदिर से लगभग एक किमी दूर मिली है। बताया जा रहा है कि अब तक इसके आठ तलों का पता लगाया जा चुका है। यह माना जा रहा है कि एक तल और नीचे भी हो सकती है। गुफा के भीतर चट्टानों पर विभिन्न पौराणिक चित्र उभरे हैं। शिवलिंग पर चट्टान की तरफ से पानी भी गिर रहा है। इस गुफा को चार स्थानीय युवाओं ने खोजा है और महाकालेश्वर नाम दिया है। माना जा रहा है कि यह प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा से भी बड़ी हो सकती है।
गंगोलीहाट के गंगावली वंडर्स ग्रुप के सुरेंद्र सिंह बिष्ट, ऋषभ रावल, भूपेश पंत और पप्पू रावल ने गुफा में प्रवेश किया। गुफा के आकार को देखते हुए दंग रह गए। चारों गुफा में दो सौ मीटर भीतर तक पहुंचे। सुरेंद्र के मुताबिक प्रवेश करते ही पहले करीब 35 फीट गहराई में उतरे। फिर प्राकृतिक रूप से बनी करीब आठ फीट की सीढिय़ां मिली। आगे बढऩे पर इसी तरह आठ तल तक सीढ़ी और समतल भाग से होकर आगे बढ़े। इसमें नौवां तल भी था लेकिन वहां पहुंच नहीं सके। गुफा करीब 200 मीटर लंबी है।
क्षेत्र की अन्य गुफाओं की तरह यहां भी चट्टानों पर पौराणिक आकृतियां उभरी हैं। शिवलिंग की आकृति पर चट्टान से पानी टपक रहा है। इसके अलावा शेषनाग व अन्य पौराणिक देवी, देवताओं के चित्र भी उभरे हैं। टीम लीडर सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पास प्रकाश के लिए कम रोशनी वाले टार्च थे और रस्सी आदि नहीं होने से वे नौंवे तल तक नहीं पहुंच सके। यह अब तक मिली गुफाओं में सबसे बड़ी है।
गुफा के अंदर पर्याप्त आक्सीजन है। 150 मीटर गहरी पाताल भुवनेश्वर की तरह यह गुफा इस क्षेत्र के पर्यटन में मील का पत्थर साबित हो सकती है। गंगावली वंडर्स ग्रुप को आधुनिक उपकरण मिले तो वे क्षेत्र की तीन अन्य गुफाओं की जानकारी भी सामने लाएंगे।रविवार को गुफा खोजने वाले युवाओं ने इस गुफा को महाकालेश्वर नाम दिया है। स्थानीय जनता इसे प्रमुख आस्था का केंद्र मान रही है। सुरेंद्र की सूचना पर कुमाऊं विवि के पूर्व भूगर्भवेत्ता डा. वीएस कोटलिया ने भी गुफा का निरीक्षण करने के लिए आने की बात कही है।
गुफा की मौजूदगी के बारे में करीब एक साल पूर्व गंगोलीहाट के युवा दीपक रावल को जानकारी मिली थी। वह इस गुफा के संकरे प्रवेश द्वार से अंदर गए, परंतु संसाधन नहीं होने से प्रयास सफल नहीं हो सका। प्रभारी क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई, अल्मोड़ा डा. चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि पिथौरागढ़ में हाटकालिका मंदिर के समीप पाताल भुवनेश्वर गुफा की तरह ही नई गुफा खोजे जाने की सूचना मिली है। विभागीय टीम मौके पर जाएगी और इस पर शोध शुरू किया जाएगा।