देहरादून : उत्तराखंड के बहुचर्चित कथित रणवीर एनकाउंटर केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने तत्कालीन इंस्पेक्टर संतोष कुमार जायसवाल, सब इंस्पेक्टर नितिन चौहान, नीरज यादव, जीडी भट्ट और कांस्टेबल अजीत को जमानत दे दी है। पांचों दोषी पुलिसकर्मी अब तक 11 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। देहरादून में साल 2008-09 में रणवीर एनकाउंटर मामले में पुलिसवालों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। मामले में कुल 17 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। कुछ को न्यायालय ने बरी कर दिया था। अब भी पांच सुद्धोवाला जेल में बंद थे।
रणवीर एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिए जाने के बाद उत्तराखंड पुलिस के दामन पर कभी न धुलने वाला दाग लग गया था। कोर्ट से भी यह हकीकत साबित हो गई थी कि, एमबीए के छात्र रणवीर को पुलिस ने उठाकर मारा था। मोहिनी रोड पर गाली-गलौज को लेकर एक दारोगा से टकराव हो गया था। चौकी में सबक सिखाने के लिए दी गई यातनाओं के दौरान हालात बिगड़ने पर पुलिस ने बचाव में यह पूरा खेल रचा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुठभेड़ को लेकर पुलिस की तो अपनी कहानी है, लेकिन बाद में पूरी साजिश सामने आ गई। असलियत यह थी कि, 3 जुलाई 2009 की दोपहर को रणवीर दो साथियों के साथ मोहिनी रोड पर बाइक लिए खड़ा था। डालनवाला कोतवाली से लौटते हुए दारोगा जीडी भट्ट ने संदिग्ध मानते हुए उनसे सवाल-जवाब किए। निर्दोष रणवीर खुद को संदिग्ध मानने से तिलमिला उठा। संदिग्ध कहे जाने को लेकर दारोगा से कहा-सुनी हुई और बात बढ़ने पर धक्का-मुक्की हो गई। किसी ने इस हंगामे की जानकारी कंट्रोल रूम पर दे दी। पुलिस रणवीर को पकड़कर चौकी ले गई।
रणबीर के परिजनों का आरोप है कि, यहां पर उसे थर्ड डिग्री देकर टार्चर किया गया, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। अपना जुर्म छुपाने के लिए पुलिस उसे गाड़ी में डालकर लाडपुर के जंगल में ले गई, जहां पर फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़कर उसकी हत्या कर दी गई है। इस कहानी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी तस्दीक करती है। रिपोर्ट में कहा गया था कि, रणवीर के शरीर में 28 चोटें पाई गई हैं और उसे 22 गोलियां मारी गई थीं। इसी हकीकत को आधार बनाकर परिजनों ने पुलिस के खिलाफ जंग जीती। सरकार ने इस मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ हत्या और अन्य धाराओं में मुकदमे दर्ज करा कर मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी थी।
वहीं एनकाउंटर को लेकर पुलिस की भी अपनी कहानी थी, जिसके मुताबिक 3 जुलाई 2009 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का मसूरी में दौरा होने के कारण पुलिस काफी सतर्क थी। सरकुलर रोड पर आराघर चौकी प्रभारी जीडी भट्ट दुपहर के समय वाहनों की चेकिंग कर रहे थे। इसी बीच मोटर साइकिल पर आए तीन युवकों को रोका गया तो उन्होंने भट्ट पर हमला कर उनकी सर्विस रिवाल्वर लूट ली। लूटपाट के बाद तीनों बदमाश फरार हो गए। कंट्रोल रूम में सूचना प्रसारित होने के बाद सक्रिय हुई पुलिस ने बदमाशों की तलाश शुरू की गई। करीब दो घंटे बाद लाडपुर के जंगल में बदमाशों से मुकाबले का दावा किया गया। आमने-सामने की फायरिंग में पुलिस ने रणवीर पुत्र रवींद्र निवासी खेकड़ा बागपत को मार गिराने का दावा किया था, जबकि उसके दो साथी फरार दर्शाए गए थे। मौके पर ही लाइसेंस के आधार पर उसकी पहचान कर दी गई थी। उस समय अफसरों ने भी मौके पर पहुंचकर पुलिस की पीठ थपथपाई थी। वहीं, लंबी कानूनी लड़ाई और सच्चाई को उजागर करने के बाद 17 पुलिसकर्मियों को फर्जी एनकाउंटर के आरोप में जेल भेज दिया गया।
किन पर क्या थे आरोप
- हत्या, अपहरण व आपराधिक षड्यंत्र : तत्कालीन इंस्पेक्टर डालनवाला एसके जायसवाल, आराघर चौकी इंचार्ज जीडी भट्ट, कांस्टेबल अजीत सिंह, एसओजी प्रभारी नितिन चौहान, एसओ राजेश बिष्ट ,सब इंस्पेक्टर नीरज यादव व चंद्रमोहन
- साक्ष्य छिपाना : सौरभ नौटियाल, विकास बलूनी, सतबीर सिंह, चंद्र पाल, सुनील सैनी, नागेंद्र राठी व संजय रावत
- सरकारी दस्तावेजों से छेड़छाड़ व साक्ष्य मिटाना : इंद्र भान सिंह, मोहन सिंह राणा, जसपाल गुसाईं व मनोज कुमार।