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हरिद्वार (चंद्रप्रकाश बहुगुणा): हिन्दु शास्त्रों-पुराणों में ऐसा उल्लेख पढ़ने को मिलता है कि यदि गौ घृत से कोई दीपक लगातार 24 वर्षों तक जलता रहे, तो वह सिद्ध हो जाता है, जिसके दर्शन मात्र से ही अनेकानेक पापों का प्रक्षालन हो जाता है। ऐसी ही एक सिद्ध ज्योति शांतिकुंज में है, जो सन् १९२६ से अब तक सतत प्रज्वलित है। अखिल विश्व गायत्री परिवार का जन्म ही इस सिद्ध ज्योति के प्रज्वलन के साथ हुआ। इसी अखण्ड दीपक का संपूर्ण गायत्री परिवार अगले साल शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। जिसकी तैयारियों के लिए भारत सहित अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, यूके आदि देशों के करोड़ों गायत्री परिजन जुट गये हैं।
गायत्री के सिद्ध साधक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इसी दीपक के समक्ष 24-24 लाख के 24 महापुरश्चरण तथा आजीवन साधना करके वह सिद्धि पायी, जिससे वे एक महान् ऋषि के रूप में जाने जाते हैं तथा देश-विदेश के करोड़ों लोगों द्वारा परम पूज्य गुरुदेव कहलाने का गौरव मिला। आचार्य श्री ने अपनी जीवनी ‘हमारी वसीयत और विरासत’ में इस अखण्ड दीपक की दिव्य अनुभूति के विषय में लिखा है कि ‘इसके प्रकाश में बैठकर जब भी हम साधना करते हैं, तो मनःक्षेत्र में अनायास ही दिव्य भावनाएँ उठने लगती हैं। कभी किसी उलझन को सुलझाना अपनी सामान्य बुद्धि के लिए संभव नहीं होता, तो इस अखण्ड ज्योति की प्रकाश किरणें अनायास ही उस उलझन को सुलझा देती हैं।
इस दीपक के दर्शन से आज भी हर दर्शनार्थी के अंतराल में अभीष्ट हलचल उत्पन्न होती है और महान् परिवर्तन का आधार बनता है। दरअसल महानता की ओर अग्रसर होने और कदम बढ़ाने की उमंग का उठना ही तीर्थ का प्रत्यक्ष पुण्यफल है, जिसकी गहन अनुभूति इस अखण्ड दीप के दर्शन से सहज होने लगती है। यह सिद्ध अखण्ड दीपक ही है, जो गायत्री तीर्थ को जीवन्त-जाग्रत् बनाये रखने और तीर्थ चेतना को अत्यधिक घनीभूत करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। जो साधक इस तीर्थ चेतना की गहराई में श्रद्धा से डुबकी लगाते हैं, वे अनेकानेक ऋद्धि-सिद्धियों को सहज हासिल करने में समर्थ बनते हैं और जीवन में नया परिवर्तन, नवनिर्माण का अनुभव करते हैं। एक चीज को बदल कर दूसरी में रूपांतरण करने की प्रक्रिया ही नवनिर्माण कहलाती है।
अपनी प्रचण्ड जप-तप ऊर्जा के माध्यम से युगऋषि ने अनेकानेक दिव्य शक्तियों को यहाँ सघन कर व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण तथा समाज निर्माण हेतु सुनियोजित किया है। अखण्ड दीपक में मनुष्य के विचारों, भावनाओं को बदलने और दिव्य प्रेरणाओं तथा श्रेष्ठ संकल्पों का संचार करने की दृढ़ शक्ति है। इसकी किरण रूपी बीज को अपने अंतःकरण में प्रतिष्ठित कर उसका रख-रखाव कर, विकसित करके मनुष्य अपने नवनिर्माण की ओर सहज ही अग्रसर हो सकता है।
इस घृत के अखण्ड दीपक के सामने देवकन्याओं द्वारा आज भी दिन-रात अनवरत जप चलता है, विश्व भर में फैले गायत्री साधक भी इसी दीपक का ध्यान करते हैं। शांतिकुंज की अधिष्ठात्री श्रद्धेया शैल दीदी स्वयं प्रातः, अपराह्न एवं संध्याकालीन ध्यान-साधना नियमित रूप से इस अखण्ड दीपक के समक्ष सम्पन्न करती हैं।
कई महत्त्वपूर्ण अवसरों पर अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी अपने उद्बोधन में शांतिकुंज में भी एक सूक्ष्म शांतिकुंज होने का जिक्र किया करते हैं, जिसका सीधा संबंध इस अखण्ड दीपक की चेतना से ही हो सकता है। सामान्य तौर पर तो शांतिकुंज में अन्य स्थानों जैसे केवल भव्य भवन ही हैं, लेकिन शांतिकुंज में सबसे प्रमुख अखण्ड दीपक से उत्सर्जित दिव्य चेतना ही है, जो आगन्तुकों, दर्शनार्थियों को प्रेरित-प्रभावित करती, जीवन में शुभ परिवर्तन की प्रेरणा भरती रहती है। इस तरह केवल दर्शन मात्र से यह अखण्ड दीपक तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्रदान करता है।
