8
हरिद्वार : आज के दौर में व्यस्त और असंतुलित जीवनशैली के कारण जीवनशैली आधारित रोगों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। अस्वास्थ्यकर आदतें जैसे देर से सोना, फास्ट फूड का सेवन, तनाव, और शारीरिक गतिविधियों की कमी हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं। पतंजलि वैलनेस में कार्यरत प्राकृतिक चिकित्सा और योग विज्ञान इंटर्न रुचिता उपाध्याय का मानना है कि अगर हम अपने जीवन में कुछ सरल और प्राकृतिक बदलाव करें, तो इन रोगों से आसानी से बच सकते हैं।
जीवनशैली में सुधार का महत्व
रुचिता उपाध्याय बताती हैं कि जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव जैसे समय पर सोना, संतुलित आहार लेना और तनाव प्रबंधन से न केवल शरीर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार आता है। आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में संतुलन और समग्र स्वास्थ्य को विशेष महत्व दिया गया है। इसे ‘संपूर्ण स्वास्थ्य’ का आधार माना गया है।
दिनचर्या (दैनिक आदतें)
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, सुबह जल्दी उठने और सही दिनचर्या का पालन करना आवश्यक है। सुबह सूर्योदय से पहले उठने का समय सबसे उपयुक्त माना गया है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जो योग और ध्यान के लिए आदर्श है। सुबह उठते ही गुनगुना पानी पीना पाचन तंत्र को साफ करने में सहायक होता है। इसके साथ नीम या बबूल की दातुन का उपयोग करने से दांत मजबूत रहते हैं और मुँह की स्वच्छता बनी रहती है।
ऋतुचर्या (मौसम के अनुसार दिनचर्या)
प्राकृतिक चिकित्सा में ऋतुचर्या का महत्व भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ऋतु के अनुसार आहार और दिनचर्या में बदलाव लाना जरूरी है। गर्मियों में हल्का और ठंडा भोजन, बरसात में गरम पानी और उबला हुआ खाना, तथा सर्दियों में गर्म और पौष्टिक भोजन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह आदतें न केवल मौसमी बीमारियों से बचाव करती हैं बल्कि शरीर के सामंजस्य को भी बनाए रखती हैं।
शारीरिक व्यायाम और अभ्यंग (मालिश)
नियमित व्यायाम जैसे योगासन और हल्का दौड़ना, शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह शरीर की क्षमता, प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक संतुलन में सुधार लाता है। इसके साथ ही अभ्यंग या तेल मालिश भी बहुत फायदेमंद मानी जाती है। सरसों, तिल या नारियल के तेल से मालिश करने से त्वचा की चमक, मांसपेशियों की मजबूती, और दर्द से राहत मिलती है।
आहार विज्ञान
प्राकृतिक चिकित्सा में ताजा और गरम भोजन को पाचन के लिए उत्तम माना गया है। सही मात्रा में भोजन का सेवन और धीरे-धीरे चबाकर खाना भी महत्वपूर्ण है। आयुर्वेदिक दृष्टि से संतुलित थाली, जिसमें अनाज, सब्जियाँ, दालें, और कुछ मात्रा में घी हो, शरीर के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
योग और मानसिक अनुशासन
योग के अभ्यास से शरीर और मन में लचीलापन और संतुलन आता है। रुचिता उपाध्याय योग को शारीरिक और मानसिक अनुशासन का माध्यम मानती हैं। वह स्वामी विवेकानंद का ‘बंदर का दृष्टांत’ का भी उल्लेख करती हैं, जो मन की चंचलता और इच्छाओं को काबू में रखने की प्रेरणा देता है।
नींद और विश्राम
पर्याप्त नींद स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। वयस्कों को 6-8 घंटे और बच्चों को 8-10 घंटे की नींद लेनी चाहिए। रात में सोने से पहले पैरों की मालिश और शांत वातावरण में सोना लाभकारी होता है। इससे मन शांत होता है और अच्छी नींद आती है।
रुचिता उपाध्याय के अनुसार, स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर न केवल जीवनशैली आधारित रोगों को दूर किया जा सकता है, बल्कि एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा और योग विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाकर हम समाज को स्वस्थ और खुशहाल बना सकते हैं।