मधुबनी : बाबा कपिलेश्वर शिवधाम मिथिला का प्रमुख सिद्धतीर्थ है। लोग इन्हें ‘मिथिला का बैद्यनाथ’ भी कहते हैं। यहां कपिल मुनि ने अपनी घोर तपस्या से शिव को प्रसन्न कर सिद्धि प्राप्त की थी। तत्पश्चात सांख्य शास्त्र के जटिल सूत्रों की रचना कर मानव सृष्टि की रचना में पुरूष और प्रकृति की सत्ता प्रमाणित की थी। इस स्थान का महत्व केवल कपिल मुनि द्वारा स्थापित शिवालय के कारण ही नहीं है, बल्कि पुराणों के अनुसार कपिलेश्वर स्थान का महत्व राजा जनक की राजधानी या सुखवास के मुख्य दक्षिणी सीमा पर स्थित रहने के कारण भी है।
महर्षि कर्दम व देवहुति के आत्मज कपिल मुनि जो विष्णु के अवतार कहे जाते हैं। उन्होंने मिथिलापुरी को दक्षपुत्री सती के शरीरांश गिरने व गिरिराज किशोरी पार्वती का जन्मभूमि होने के कारण परम पवित्र जानकर यहां के घनघोर जंगल एवं महाश्मसान के बीच पवित्र कमला नदी के किनारे आश्रम बनाया। जहां ज्ञान प्राप्ति के लिए कपिल ने शिवलिंग की स्थापना की, जो कपिलेश्वर नाम से विख्यात हुआ। इस शिवलिंग पूजन की परंपरा सहस्त्राब्दियों से है। महाभारत में इसका उल्लेख उन्हीं के वचनो में –
कपिलेश्वर तत: प्राह सांख्यर्षिदेव सम्मत:
मया जग्मान्यनेकानि भक्त्या चाराधिता भव:
प्रीतश्च भगवान ज्ञानं ददौ भवान्तकम् ।
कपिल व कपिलेश्वर लिंग का वर्णन वृहद विष्णपुराण, श्वेताश्वतर उपनिषद, यामलसारोद्धार तंत्र सहित अनेक प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है। एक स्थान पर उल्लेख मिलता है कि सीताराम विवाह में शिव जनकपुर पधारे थे। जिससे इस शिवलिंग की प्राचीनता सिद्ध होती है। महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन कपिल को बुद्ध पश्चात मानते हैं किंतु गार्वे कपिल को बुद्ध पूर्व का ऐतिहासिक व्यक्ति बताते हैं। डॉ. राधाकृष्णन समेत अनेक विद्वानों के मत में कपिल बुद्ध पूर्व के सांख्यकार हैं। गीता एवं रामायण के अनुसार भी कपिलेश्वर शिव के प्रतिष्ठापक काफी प्राचीन ऋषि हैं। कपिल की बहन अनसूया ने अपने आश्रम में सीता को उपदेश दिया था। ऐतिहासिक प्रमाणों व जनश्रुतियों के आधार पर मुनिवर कपिल मधुबनी के समीन ककरौल गांव के वासी थे। वहीं उनका प्रसिद्ध आश्रम था। महाकवि विद्यापति कहते हैं-कत युग सहस वयस वहि गेला। कहा जाता है कि महाकवि विद्यापति का जन्म आशुतोष कपिलेश्वर की कृपाप्रसादात स्वरूप हुआ।
जनमानस में बाबा कपिलेश्वर नाथ काम मोक्ष प्रदाता हैं। कपिलेश्वर बाबा जगत के स्वामी, जगत किसान, त्रिभुवन दाता, संतान दाता, धान्य दाता, पशुपति, रोग शोक नाशक बैद्यनाथ, अधम उद्धारक आदि के रूप मे प्रसिद्ध हैं। पवित्र सावन माह के सोमवारी को जिले के जयनगर कमला नदी से कांवर में जल लेकर लाखों की संख्या में कांवरिए कमला जल से बाबा का जलाभिषेक करते हैं। यह मंदिर दरभगा महाराज के धार्मिक ट्रस्ट के अधीन है। महाराज दरभंगा ने धार्मिक न्यास के तहत 75 एकड़ जमीन दान देकर यहां 25 एकड़ का विशाल सरोवर का निर्माण भी कराया।