काशी : हिंदू धर्म में इस मंदिर की काफी मान्यता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने आया भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता। काशी के काल भैरव मंदिर में ब्रह्माजी और काल भैरव से जुड़ी एक बेहद रोचक पौराणिक कथा का भी जिक्र किया जाता है। कहा जाता है कि एक बार गुस्से में काल भैरव ने ब्रह्माजी का 5वां मुख काट दिया था। भगवान शंकर की नगरी कही जानेवाली काशी के राजा हैं बाबा विश्वनाथ। साथ ही काल भैरव को इस शहर का कोतवाल कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस शहर में भैरव बाबा की ही मर्जी चलती है और वह पूरे शहर की व्यवस्था देखते हैं। इतना ही नहीं यहां के लोगों के बीच यह मान्यता है कि यहां मंदिर के पास एक कोतवाली भी है और काल भैरव स्वयं उस कोतवाली का निरीक्षण करते हैं।
कैसे बने भैरव बाबा काशी के कोतवाल
काल भैरव के काशी में स्थापित होने के पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है। एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच यह चर्चा छिड़ गई कि दोनों में बड़ा कौन है? चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिव बहुत क्रुद्ध हुए। उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। इसी कारण काल भैरव को शिव का अंश कहा जाता है। काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करनेवाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया।अब यह मुख उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था। तभी शिवजी प्रकट हुए और भैरव से कहा कि अब तुम्हें ब्रह्म हत्या का दोष लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्हें एक सामान्य व्यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा। जिस स्थान पर यह शीश तुम्हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी।
शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए। उनके जाते ही शिवजी की प्रेरणा से एक तेजस्वी कन्या प्रकट हुई, जो अपनी लंबी जीभ से कटोरे में रक्तपान कर रही थी। यह कन्या कोई और नहीं ब्रह्म हत्या थी। इसे भगवान शिव ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था। शिवजी के कहे अनुसार, भैरव ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोक की यात्रा कर रहे थे और वह कन्या भी उनका पीछा कर रही थी। फिर एक दिन जैसे ही भैरव बाबा ने काशी में प्रवेश किया कन्या पीछे छूट गई। शिवजी के आदेशानुसार काशी में इस कन्या का प्रवेश करना मना था। काशी शिव की नगरी है, जहां वह बाबा विश्वनाथ के रूप में नगर के राजा के तौर पर पूजे जाते हैं। यहां गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया और भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई।
काल भैरव के पाप मुक्त होते ही वहां शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। शिवजी ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में तुम्हारी युगों-युगों तक पूजा होगी। शिव प्रेरणा से जिस स्थान पर काल भैरव रह गए, बाद में वहां काल भैरव का मंदिर स्थापित कर दिया गया। काशी में मान्यता है कि भक्तों को बाबा विश्वनाथ के बाद काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है। नहीं तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन भी अधूरा माना जाता हैं।