मिलकर चलो मिलकर बोलो यह मानवता के गुण हैं -आचार्य  शिवप्रसाद ममगाईं

by intelliberindia
देहरादून : वैदिक ऋषियों ने प्राकृतिक शक्तियों के साथ माता पिता पुत्र मित्र जैसे पारिवारिक सम्बन्धों की स्थापना पर बल दिया था. उन्होंने प्रकृति के साथ त्रिआयामी अर्थात भावनात्मक बौद्धिक एवं आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित  करने पर बल दिया. उन्होंने अपने पवित्र ह्रदय एवम विलक्षण मेधा के बल पर यह निष्कर्ष निकाला कि विश्व की प्रयोजनशील व्यवस्था में मानव को भावनात्मक बौद्धिक एवम आध्यात्मिक सामर्थ्य प्राप्त है. अतः मानव विश्व की व्यवस्था के प्रति उपरोक्त तीनों सामर्थ्य की दृष्टि से उत्तरदायी है. वैदिक ऋषियों ने मानवीय जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों को इस प्रकार के आचार निर्देश से प्रभावित किया कि मानव का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवम कृतित्व स्वयममेव नैतिक पर्यावरण को परिलक्षित करने लगता है. उसे पर्यावरण परक नैतिक बोध के लिए पृथक से नीतिशास्त्र के निर्देशों की आवश्यकता नही पड़ती. उक्त विचार ज्योतिष्पीठ ब्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने लक्ष्मण चौक पार्क रोड में विजयपाल सिंह रावत की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत के समापन दिवस  पर व्यक्त करते हुए कहा कि नैतिक पर्यावरण मानव की जीवन शैली का अभिन्न अंग बन जाता है. प्रकति के साथ उपयोगितावादी सामंजस्य भारतीय नागरिकों की दृष्टि में गौण है भले ही प्रकृति का श्रेष्ठ अनुदान नैतिक आचार विचार के प्रभाव से स्वतः ही स्फूर्त होने लगता है. भारतीय नीतिकार प्रक्रति से सामंजस्य स्थापित करने के लिए भावनात्मक सम्बन्ध पर विशेष ध्यान देते हैं. उदाहरण के लिए प्रातः काल निद्रा से जागने पर पृथ्वी माता से पाद स्पर्श होने पर क्षमा याचना करते हुए नीतिकार कहता है कि हे देवी समुद्र तुमारा कटिबन्ध है और पर्वत वक्ष है हे विष्णु पत्नी तुम्हे नमस्कार है. मैंने जो तुम्हे चरणों से स्पर्श किया मेरे इस अपराध को क्षमा करो. इस प्रकार प्रक्रति के प्रति भावनात्मक सम्मान प्रकट करने के उपरांत दिवस में जो भी नित्य प्रति की क्रियाएं सम्पन्न की जाती हैं. उससे वैदिक ऋषियों के प्रक्रति पर्यावरण के प्रति उद्दात्त भावनात्मक सम्बन्धों का परिचय मिलता है. सूर्योदय के साथ ही सूर्योपासना सम्पन्न की जाती है. स्न्नान मंत्र में भी अधिकांश नदियों का स्तवन किया जाता है. तुलसी पीपल आदि वृक्ष की उपासना की जाती है. इन धार्मिक क्रियाओं से उपयोगितावादी बौद्धिक सम्बन्ध स्वतः सम्पादित हो जाता है. किंतु इन दैनिक क्रियाओं को उपयोगितावादी कर्म की संज्ञा न देकर धार्मिक कर्म की संज्ञा दी गयी है.
सब एक विचार व एक कर्म वाले होकर परस्पर कल्याणकारी वार्ता करें. जिसकी शक्ति से देवगण विपरीत विचारवाले नही होते और परस्पर विद्वेष भी नही करते हैं. उस समान विचार को सम्पादित करने वाले ज्ञान को हम आपके घर के मनुष्यों के लिए करते हैं. आज समाज मे चतुर्दिक घृणा अविश्वास व भेदभाव का बोलबाला है ऋषिगण समाज के प्राणियों को प्रेम विश्वास व सहकार की शिक्षा देते हुए कहते हैं. समानता की कामना करने वाले मनुष्यों आपके जल पीने के स्थान एक हो व अन्न का भाग साथ साथ हो. हम आपको एक ही प्रेमपाश में बांधते हैं. जिस प्रकार पहियों अरे नाभि के आश्रित होकर रहते हैं. उसी प्रकार आप सब एक ही फल की कामना करते हुए. अग्नि देव की उपासना करें वैदिक ऋषि अहिंसा प्रेम मित्रदृस्टि जैसे नैतिक उपायों को सामाजिक व पारिस्थिकी दृष्टि से बड़ा महत्व देते हैं यथा मिलकर चलो मिलकर बोलो मेरी दृष्टि दृढ़ कीजिये सभी प्राणी मुझे मित्र की दृष्टि से देखें मैं भी सभी प्राणियों  को मित्र की दृष्टि से देखूं हम परस्पर एक दूसरे को मित्र की दृष्टि से देखें वेदों में विषहरण की विद्या मधु विद्या का उल्लेख भी व्यापक रूप से मिलता है. वैदिक ऋषि कहते हैं जो रोग निवारक सूर्य के प्रकाश से संयोग से वैद्य जन बड़ी बड़ी औषधि से विष दूर करते हैं और मधुरता को सिद्ध करते हैं सो यह सूर्य का विध्वंस करने वाला नही होता है और विष हरने वाले भी दीर्घ आयु होते हैं इस मंत्र के अंश में सूर्य का विध्वंस न होने का उल्लेख वैदिक ऋषियों के पर्यावरण चिंतन को पूर्णतः मुखरित करता है. ऋषि उसी विद्या को रोग निवारणार्थ अनुमोदित करते हैं. जिनके प्रयोग में प्राकृतिक पिंडों को जैसे प्रस्तुत मंत्र में सूर्य को हानि न पहुँचे वैदिक ऋषियों को प्रकृति के कण कण में विद्यमान आंतरिक मूल्यों का बोध था. अतः वैदिक ऋषि सृजनकर्ता की आद्यशक्ति चेतना को सर्वत्र व्याप्त मानते हैं. आज कथा के विश्राम  दिवस पर आयोजनकर्ताओं के द्वारा विशाल भंडारे का आयोजन किया गया भारी संख्या में श्रोताओं ने उपस्थित होकर कथा को श्रवण किया. इस अवसर पर मुख्य रूप से कौशल्या रावत, विकाश रावत,  जनरल तेजपाल सिंह रावत पूर्व कैबिनेट मंत्री, धीरेन्द्रपाल रावत, रविंद्र, नितिन, पृथ्वी सिंह नेगी, सुरेंद्र पँवार, प्रांजल, प्रियांश, अनुरागिनी, विजया, कुसुम, गीता राजवंशी, सोनिया, आरपी बहुगुणा, विशन चन्द्र रमोला, आचार्य शिवप्रसाद सेमवाल, आचार्य हर्षमणि घिल्डियाल, आचार्य सन्दीप बहुगुणा, आचार्य प्रदीप नौटियाल, आचार्य हिमांशु मैठाणी, सुरेश जोशी आदि भक्त गण भारी संख्या में उपस्थित थे

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