देवाल (चमोली)। घराट (पनचक्की) का नाम लेते ही पूराना जमाना याद आने लगता है। पनचक्की में पीसा गया गेहूं अथवा मंडुवे का आटा स्वादिष्ट के साथ पौष्टिक होता है। आज भी पहाड़ में घराटो का वजूद बना है। उत्तराखंड में घराटो में आटा पीसने का सिलसिला सदियों से चलते आ रहा है। घराट हर गांव और तोको में होते हैं। जो निशुल्क चलते थे, केवल भगवाडी अर्थात गेंहू, मंडुवा जो भी पीसा गया उसी को एक-दो अंजुल वहां रखे वर्तन में रख दिया जाता था वही घराट के मालिक का मेहनताना होता था। ग्रामीण घराटो का निर्माण स्वयंम करते थे। घराट से मोटे अनाज जौ बाजरा, गेहूं, चना, सोयाबीन, भट्ट आदि को पीस कर खाते हैं। जब से इलैक्ट्रिक चक्किया अस्तित्व में आई तो घराटो का प्रचलन धीरे-धीरे कम होने लगा। अब दूरस्थ गांव वाण, घेस, रामपुर तोरती, ऐराठा, कनोल, सुतोल, बगडबेरा, चिड़िया, झलिया कुंवारी, रैन, गरसो, खेता मानमती, सौरीगाड, चोटिंग सहित दूरस्थ गांव में आज भी लोग घराट का प्रयोग करते हैं। घराट गांव में रोजगार का जरिया भी है। वर्ष 2012 में प्रदेश सरकार ने घराटो के आधुनिकीकरण करने का प्रयास किया। घराटो में ऐसे संयंत्र लगाए जो आटा पीसने के साथ बिजली भी पैदा करता है। तकनीकी कमी के चलते कुछ समय तो चले फिर खराब हो गए। लेकिन घराट आज भी अस्तित्व में है।
कैसे बनाया जाता है घराट
घराट जहां प्रकृतिक श्रोत पांच से दस इंच का पानी बहता है, ऐसे स्थान पर लगाया जाता है। इसमें 20 फीट का लकड़ी का नालीनुमा जिले पनेला कहा जाता है लगाया जाता है। एक गोल लकड़ी के पंखा नुमा चक्का बनाया जाता है जिसके उपरी भाग पर दो चपटे गोल पत्थर लगाये जाते है। जो पानी से चलता है। जिसमें जो भी सामग्री पीसा जाता है वह काफी मुलायम होता है।
क्या कहते है जानकार
सदियों से हर गांव में आठ-दस घराट होते हैं। जो पिसाई कि काम करते हैं। घराटो में पीसा गया आटा पैष्टिक और स्वादिष्ट होता है। अब चक्कियों के प्रचलन से घराटो की संख्या में गिरावट आई है। चक्की में पीसा आटा में उतना स्वादिष्ट नहीं होता है और साथ ही उसकी पौष्टिकता भी समाप्त हो जाती है। अभी भी गांव में घराट है लोग प्रयोग करते हैं। अब लोगों ने घराट को रोजगार का जरिया भी बना लिया है।
ब्रजमोहन गडिया, घराटो के जानकार, रैन देवाल