होलिका दहन : मानसिक शांति, स्वास्थ्य और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक

by intelliberindia
हरिद्वार : होलिका दहन का पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि हमारे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य को संतुलित करने का भी एक माध्यम है। इस पावन अवसर पर हम अपने भीतर की नकारात्मकता को जलाकर एक नई ऊर्जा और उमंग के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संकल्प लेते हैं।

आयुर्वेद की दृष्टि से होलिका दहन का महत्व

डॉ. अवनीश उपाध्याय बताते हैं, “आयुर्वेद के अनुसार, होलिका दहन के समय अग्नि में गेंहू की बालियाँ, नारियल, हवन सामग्री एवं विभिन्न जड़ी-बूटियाँ डाली जाती हैं, जिससे वातावरण में शुद्धता आती है। इस प्रक्रिया से वायु में उपस्थित हानिकारक कीटाणु और बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, जिससे मौसमी बीमारियों से बचाव होता है।”
इस समय सर्दी और गर्मी के संधिकाल (मौसम परिवर्तन) के कारण शरीर में कई तरह के असंतुलन उत्पन्न होते हैं। होलिका दहन से उत्पन्न गर्मी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होती है। इसके अलावा, इस अवसर पर गुड़, हल्दी, मेथी, सोंठ आदि का सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है और सर्दी-खांसी जैसी समस्याओं से बचाव होता है।

मानसिक स्वास्थ्य और तनाव मुक्ति में होलिका दहन की भूमिका

डॉ. रुचिता त्रिपाठी उपाध्याय कहती हैं, “होलिका दहन केवल बाहरी शुद्धिकरण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को संतुलित करने का भी एक उपाय है। इस अवसर पर जब हम बुरी आदतों, अहंकार, ईर्ष्या और नकारात्मक भावनाओं को प्रतीकात्मक रूप से अग्नि को समर्पित करते हैं, तो हमारे भीतर एक मानसिक शांति का अनुभव होता है। यह एक तरह की थेरेपी की तरह काम करता है, जिससे स्ट्रेस और चिंता दूर होती है।”
योग और ध्यान की दृष्टि से भी यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। होलिका दहन के दौरान अग्नि के सामने बैठकर प्राणायाम करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह ध्यान केंद्रित करने और मन को स्थिर रखने में भी सहायक होता है।

सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा

यह पर्व केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि समाज में प्रेम, भाईचारे और सद्भाव को बढ़ाने का भी संदेश देता है। होलिका दहन के समय लोग एक साथ एकत्रित होते हैं, पुरानी रंजिशें भूलकर गले मिलते हैं और होली के रंगों का आनंद लेने के लिए तैयार होते हैं।
डॉ. अवनीश उपाध्याय कहते हैं,”यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागकर जीवन को एक नई दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए। जब हम अपने अहंकार और बुरी आदतों को होलिका की अग्नि में समर्पित कर देते हैं, तो हमारा मन हल्का और शुद्ध हो जाता है।”
होलिका दहन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमें स्वस्थ जीवन जीने की कला भी सिखाता है। आयुर्वेद और योग के माध्यम से हम इस पर्व को और अधिक लाभकारी बना सकते हैं। मानसिक शांति, रोग प्रतिरोधक क्षमता, सामाजिक समरसता और आत्मशुद्धि—ये सभी इस पर्व का अभिन्न हिस्सा हैं।
डॉ. रुचिता त्रिपाठी उपाध्याय कहती हैं, हमें होलिका दहन का वास्तविक संदेश समझकर, अपनी पुरानी बुरी आदतों को छोड़कर, मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आइए, इस होली पर हम प्रेम, आनंद और सद्भाव के रंगों से अपने जीवन को सजाएं!”

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