चित्तौड़गढ़ जिले में चमत्कारिक श्री शनि महाराज का प्रसिद्ध मंदिर

by intelliberindia

चित्तौड़गढ़ :   श्री शनि महाराज का एक प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन उपखण्ड के आली गांव में स्थित है। आली गांव को शनि महाराज के नाम से ही जाना जाता है । किवदंती के अनुसार शनि देव की यह मूर्ति मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह जी अपने हाथी की ओदी पर रखकर उदयपुर की ओर ले जा रहे थे। उक्त स्थान पर पहुंचने पर शनि देव की मूर्ति हाथी की ओदी से गायब हो गयी जो काफी ढूढ़ने पर भी नहीं मिली। कालांतर में काफी वर्षो में बाद यहाँ ऊँचनार खुर्द निवासी जोतमल जाट के खेत में बेर की झाड़ी के नीचे शनि देव की मूर्ति का कुछ हिस्सा बाहर प्रकट हुआ, जहाँ इनकी पूजा-अर्चना सेवा तेल प्रसाद बालभोग आरम्भ किया गया उस समय यह स्थान काला भेरू के नाम से जाना जाता था।

विगत शताब्दी में कुछ लोगो ने मूर्ति का जमीन में धंसा हिस्सा बाहर निकालने का प्रयास किया, लेकिन नाकाम रहे। उसी समय वहाँ एक संत महात्मा अचानक आ पहुंचे, तो लोगो ने उनके साथ मिलकर उनके कहे अनुसार मूर्ति को ऊपर की ओर खींचा, तो उसका अधिकांश हिस्सा बाहर निकल आया था और कुछ अंदर ही रह गया। इसके बाद वह महात्मा वहाँ से कुछ दूरी पर जाकर गायब हो गये। लोगो ने इसे मूर्ति ही चमत्कार माना। इसके बाद से ही यह स्थान श्री शनि महाराज के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ कई चमत्कार हुए है, जिसमे एक प्राकृतिक तेल कुंड भी प्रकट हुआ, जो आज भी है। यहाँ शनि देव पर चढ़ाया जाने वाल तेल इस प्राकृतिक तेल कुंड में ही इक्कठ्ठा होता है। इस तेल का उपयोग चर्म रोगों के लिए ही होता था। कई बार इस प्राकृतिक तेल कुंड के तेल को व्यवसायिक उपयोग हेतु निकला गया तो, इसमें से तेल के गुण ही समाप्त हो गए। वह मात्र तरल पानी हो गया। ऐसे कई प्रयास हुए, लेकिन सफल नहीं हो पाए। यह भी शनिदेव का ही चमत्कार माना जाता है।

इस स्थान की पूजा-अर्चना सर्वप्रथम स्व. महाराज श्री रामगिरि जी रेबारी ने प्रारम्भ की। श्री रामगिरी जी रेबारी ने मुख्य पुजारी के रूप में शनि देव की काफी वर्षो तक सेवा पूजा की। उनका देवलोक गमन होने के बाद उनकी समाधी स्थल के लिए नींव खोदने पर प्राकृतिक तेल निकला, जिसे कुंड बनाकर रखा गया और पास में ही समाधि स्थल बनाया गया। यहाँ प्रसादी में रूप में चुरमा-बाटी बनता है। इसका बालभोग लगने से पहले तक चींटिया भी शक्कर निर्मित चुरमे को खाना तो दूर, छूती तक भी नहीं है।

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