नई दिल्ली : पिछले दशक में भारत ने महिला श्रम बल भागीदारी दर (डब्ल्यूएलएफपीआर) को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। कार्यबल में महिलाओं और विशेष रूप से युवतियों की भागीदारी बढ़ाने की परिवर्तनकारी क्षमता बहुत अधिक है, जो न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का वादा करती है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन को भी प्रेरित करती है। दिलचस्प बात तो यह है कि पिछले दशक में व्यापक सामाजिक-आर्थिक बदलावों, नीतिगत उपायों और महिलाओं के कामकाज के संबंध में सामाजिक मानदंडों में आए बदलावों को दर्शाती डब्ल्यूएलएफपी की वृद्धि संभवत: पिछली सदी में देखी गई वृद्धि से भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।
महिला श्रम बल भागीदारी के लिए निर्णायक दशक
भारत ने महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई पहल और नीतियां लागू की हैं, जो कार्यबल में महिला-पुरुष संतुलन को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती हैं। इन प्रमुख पहलों में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना शामिल है, जिसका उद्देश्य छोटे कारोबार शुरू करने के लिए बिना किसी गारंटी के ऋण प्रदान करके महिला उद्यमियों को प्राथमिकता देना है। इसके अतिरिक्त, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान लड़कियों की शैक्षिक स्थिति को बेहतर बनाने में सहायक रहा है, जिसका सीधा प्रभाव भविष्य में उनकी रोजगार की संभावनाओं पर पड़ता है। ये प्रयास कार्यस्थल पर सुरक्षा और विविधता सुनिश्चित करने संबंधी कॉर्पोरेट नीतियों के साथ मिलकर श्रम बाजार में महिलाओं के लिए बाधाओं को दूर करने के संबंध में व्यापक दृष्टिकोण दर्शाते हैं।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में 13.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है, जो 2017-18 में 22 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 35.9 प्रतिशत हो गई। यह सकारात्मक रुझान राजनीतिक और नौकरशाही (सार्वजनिक), कॉर्पोरेट (निजी) और युवतियों की इच्छाशक्ति का प्रमाण है। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी के रूप में, भारत आर्थिक अवसरों के लिए तैयार है, इस सार्वजनिक-निजी-युवा इकोसिस्टम को और मजबूत बनाना तथा उच्चतम स्तर पर नीति निर्माण को सूचित करने के लिए युवतियों को समान भागीदार के रूप में शामिल करना महत्वपूर्ण है।
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (एमओएलई) के परामर्श की प्रेरणादायी भूमिका
डब्ल्यूएलएफपीआर में सुधार लाने के आलोक में, सरकार, सिविल सोसायटी, उद्योग संघों और बहुपक्षीय एजेंसियों के प्रतिनिधित्व के साथ एक कार्य बल बनाने की दिशा में एमओएलई के प्रयास सराहनीय हैं। इस कार्यबल की चर्चाओं से प्राप्त महत्वपूर्ण निष्कर्ष को ‘महिलाओं के लिए समानता, सशक्तिकरण सुनिश्चित करना’ शीर्षक से नियोक्ताओं के लिए परामर्श के रूप में संकलित किया गया है, जो हितधारकों के बीच सहयोगात्मक दृष्टिकोण की शक्ति को सुदृढ़ बनाता है। यह कामकाज के अनुकूल वातावरण, समान वेतन प्रथाओं और कार्यबल में विशेष रूप से महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित करता है।
बाधाएं दूर करना
काम के लचीले घंटों और बच्चों की देखरेख की सुविधाओं जैसे उपायों की सिफारिश करते हुए इस परामर्श का उद्देश्य श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी को सीमित करने वाली कुछ प्राथमिक बाधाओं को दूर करना है। निर्माण कार्य में संलग्न श्रमिकों, प्रवासी श्रमिकों तथा सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्यमों में काम करने वाली महिलाओं के लिए जेंडर न्यूट्रल क्रेच और महिलाओं के कामकाजी केंद्रों के प्रावधानों के महत्व पर समान रूप से जोर दिया गया है। आवागमन और बच्चों को जन्म देने से संबंधित सामाजिक बाधाएं दो सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं, जो युवतियों के कार्यबल में प्रवेश और पुन:प्रवेश को बाधित करते हैं। परामर्श में चित्रित किए गए संलग्न क्रेच और बुजुर्गों की देखभाल की सुविधाओं युक्त महिला कामकाजी केंद्रों/छात्रावासों के विजन को साकार करने की दिशा में सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण होंगे। इसमें सुरक्षा, संरक्षा, स्वास्थ्य संबंधी देखरेख के प्रावधानों युक्त विश्वस्तरीय सुविधाओं वाले गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे का निर्माण, परिवर्तन और विकल्पों के प्रतिनिधि के रूप में युवतियों को विकसित करना और उनके निर्णय लेने की क्षमताओं को मजबूत करना शामिल होगा। सिविल सोसायटी और बहुपक्षीय एजेंसियों की सहायता समुदायों और परिवारों के व्यवहार में बदलाव लाने को बढ़ावा देगी, ताकि वे इन केंद्रों को युवतियों के लिए आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने का स्थान मान सकें।
कोविड-19 के कारण कार्यस्थलों को देखने का हमारा नजरिया बदल रहा है, तथा ज्यादातर नौकरियां हाइब्रिड और रिमोट प्रारूप में बदल गई हैं, ऐसे में प्रौद्योगिकी पारंपरिक कार्यस्थल की बारीकियों को खत्म करने में परिवर्तनकारी साबित हो सकती है। टेलीवर्किंग सुविधाओं सहित महिला-पुरुष सभी के लिए लचीले अवसरों के प्रावधान को इस तथ्य को सुदृढ़ करने के लिए परामर्श में रेखांकित किया गया है कि देखभाल एक सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए और महिलाओं को खुद पर पड़ने वाले देखभाल के असंगत बोझ के कारण रोजगार से बाहर नहीं हो जाना चाहिए।
ये घटनाक्रम महिलाओं के व्यापक आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में प्रगतिशील, हालांकि चुनौतीपूर्ण, मार्ग सुझाते हुए, इन लाभों को बरकरार रखने और संवर्धित करने के लिए निरंतर नीतिगत फोकस और सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल देते हैं।
महिलाएं शतक लगाएंगी
भारत कामकाजी लोगों की अधिक आबादी के साथ जनसांख्यिकीय लाभांश के शिखर पर है, ऐसे में महिला कार्यबल की क्षमता का पता लगाना सामाजिक न्याय और रणनीतिक आर्थिक अनिवार्यता का मामला है। समाज के सभी क्षेत्रों के ठोस प्रयासों के साथ एमओएलई का परामर्श कार्रवाई का खाका पेश करता है। आगे की यात्रा चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसका प्रतिफल-आर्थिक सुदृढ़ता, सामाजिक कल्याण और मानव सामर्थ्य की पूर्ति-पहुंच के भीतर हैं, जो वैश्विक मंच पर भारत की उन्नति के प्रयास को न केवल आवश्यक बल्कि अनिवार्य बनाता है।
इन सिफारिशों को अपनाकर और डब्ल्यूएलएफपीआर को बढ़ाने के निरंतर प्रयासों के लिए प्रतिबद्ध होकर भारत समावेशी सामाजिक एवं आर्थिक समानता और अपने सभी नागरिकों के उज्जवल भविष्य की दिशा में रास्ता निर्धारित कर सकता है। India@100 के लिए आर्थिक विकास का नेतृत्व करने वाले ‘नायक’ वास्तव में सक्षम नारियां हैं.
लेखक : धुवाराखा श्रीराम, यूनिसेफ इंडिया में युवाह की प्रमुख
Dhuwarakha Sriram is the Chief of YuWaah at UNICEF India
YuWaah is a Public – Private Youth Partnership platform for empowering
young people in India