मोदी के 11 वर्ष : दूरदर्शिता से प्रेरित, ऊर्जा से संचालित

by intelliberindia

नई दिल्ली :  भारत कुछ दिन पहले ही जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। वर्ष 2014 से, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत की जीडीपी 2025 में दोगुनी से अधिक बढ़कर 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुकी है। यह सुधारों, उदारपूर्ण नीति और आत्मनिर्भरता की निरंतर खोज पर केंद्रित एक दशक लंबी रणनीति का परिणाम है। भारत न केवल दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया है, बल्कि एक रणनीतिक शक्ति भी बन चुका है। इस वृद्धि का अभिन्न अंग ऊर्जा क्षेत्र, मोदी 3.0 के पहले वर्ष के दौरान एक संरचनात्मक परिवर्तन से गुजरा है, जो पिछले दस वर्षों के आधारभूत परिवर्तन पर आधारित है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछली तिमाही में भारत की 6.7 प्रतिशत की विकास दर ने इसे एक ऐसे तेजी से बढ़ते ग्राफ पर ला दिया है, जिसे आने वाले वर्षों में कोई भी अन्य देश हासिल करने की उम्मीद नहीं कर सकता।

भारत अब वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा और तेल उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर और चौथा सबसे बड़ा एलएनजी आयातक है। वर्ष 2047 तक ऊर्जा की मांग में ढाई गुना वृद्धि होने की आशा है और भारत से की जाने वाली वैश्विक मांग में 25 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। इसलिए रोडमैप स्पष्ट है: ऊर्जा सुरक्षा ही विकास सुरक्षा है। मोदी सरकार की ऊर्जा रणनीति चार-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से उपलब्धता, सामर्थ्य और स्थिरता के रूप में ऊर्जा की त्रिपक्षीय विविधता को दर्शाती है जिसमें स्रोतों और आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण, घरेलू उत्पादन का विस्तार, नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन और सामर्थ्य शामिल है।

तेल और गैस उत्‍पादन क्षेत्र की प्रारंभिक प्रक्रिया में, भारत का अन्वेषण क्षेत्र वर्ष 2021 में 8 प्रतिशत से दोगुना होकर वर्ष 2025 में 16 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2030 तक 1 मिलियन वर्ग किमी को कवर करने के लक्ष्य के साथ, सरकार का लक्ष्य 42 बिलियन टन तेल और तेल-समतुल्य गैस का अन्‍वेषण करना है। यह विस्तार ऐतिहासिक सुधारों जैसे कि ‘नो-गो’ क्षेत्रों में 99 प्रतिशत की कमी, ओएएलपी राउंड के माध्यम से सुव्यवस्थित लाइसेंसिंग और नए गैस कुओं के लिए आकर्षक मूल्य निर्धारण प्रोत्साहन द्वारा सक्षम किया गया है। संशोधित गैस मूल्य निर्धारण व्‍यवस्‍था के अनुरूप भारतीय क्रूड बास्केट से 10 प्रतिशत से कीमतों को जोड़ने और नए कुओं के लिए 20 प्रतिशत प्रीमियम की पेशकश करने जैसी पहलों ने शहर के गैस नेटवर्क और औद्योगिक उपयोग के लिए गैस की उपलब्धता को बढ़ाया है। लागत कम करने और मुद्रीकरण में तेजी लाने के लिए, नए राजस्व-साझाकरण अनुबंध ईएंडपी उद्यमियों के बीच साझा बुनियादी अवसंरचना की अनुमति देते हैं। तकनीकी और भू-भौतिकीय प्रयासों ने नीति सुधारों को पूरक बनाया है। राष्ट्रीय भूकंपीय कार्यक्रम, मिशन अन्वेषण, एजीजी सर्वेक्षण और महाद्वीपीय शेल्फ मैपिंग ने विशेष रूप से अंडमान, महानदी और कावेरी जैसे सीमांत बेसिनों में डेटा और अन्वेषण आत्मविश्वास को बढ़ाया है। ओएनजीसी और ऑयल इंडिया ने पिछले चार वर्षों में मुंबई अपतटीय, कैम्बे, महानदी और असम बेसिन में 25 से अधिक हाइड्रोकार्बन की खोज की हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं पश्चिमी तट के अपतटीय क्षेत्र में सूर्यमणि और वज्रमणि कुएं और पूर्वी तट के गहरे पानी में उत्कल और कोणार्क क्षेत्र। इन खोजों से भारत के भंडार में 75 एमएमटीओई और 2,700 एमएमएससीएम गैस की वृद्धि हुई है।

वैश्विक बड़ी कंपनियों के साथ सहयोग लाभकारी सिद्ध हो रहा है। बीपी के साथ ओएनजीसी की साझेदारी से मुंबई हाई से तेल के लिए 44 प्रतिशत और गैस के लिए 89 प्रतिशत उत्पादन बढ़ने का अनुमान है। ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में एक डेटा सेंटर अब अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत के अन्वेषण डेटासेट तक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है। डाउनस्ट्रीम बुनियादी ढांचे में समानांतर विस्तार हुआ है। भारत अब 24,000 किलोमीटर उत्पाद पाइपलाइनों, लगभग 96,000 खुदरा दुकानों का संचालन करता है और इसने अपने रणनीतिक भंडार और एलपीजी भंडारण को काफी मजबूत किया है। 67 मिलियन से अधिक लोग प्रतिदिन पेट्रोल पंपों पर जाते हैं और यह भारत के ईंधन आपूर्ति इको-सिस्‍टम की व्‍यापकता और दक्षता का प्रमाण है।

भारत का शहरी गैस नेटवर्क वर्ष 2014 में 55 भौगोलिक क्षेत्रों से बढ़कर वर्ष 2025 में 307 हो गया है, जिसमें पीएनजी कनेक्शन 25 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो गए हैं और 7,500 से अधिक सीएनजी स्टेशन चालू हैं। एकीकृत पाइपलाइन शुल्क और शहरी गैस विस्तार ने दूरदराज के राज्यों में भी सस्ती पहुंच सुनिश्चित की है। जैव ईंधन भारत की हरित रणनीति का आधार बन चुका है। पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण 2013 के 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 19.7 प्रतिशत हो गया है। मिश्रण की मात्रा 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 484 करोड़ लीटर हो गई है। इससे 1.26 लाख करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत हुई, 643 लाख मीट्रिक टन उत्सर्जन कम हुआ और डिस्टिलर्स को 1.79 लाख करोड़ रुपए और किसानों को 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान हुआ।

फीडस्टॉक विविधीकरण- गुड़ से लेकर मक्का की मदद से मजबूत इथेनॉल इको-सिस्‍टम तैयार किया गया है। समानांतर रूप से, एसएटीएटी पहल ने 100 से अधिक संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) संयंत्रों को चालू किया है और वर्ष 2028 तक 5 प्रतिशत सीबीजी मिश्रण अधिदेश का लक्ष्य रखा है। बायोमास खरीद और सीबीजी-पाइपलाइन कनेक्टिविटी के लिए केंद्रीय समर्थन सर्कुलर ऊर्जा अपनाने में तेजी ला रहा है। 8.62 लाख टन उत्पादन और 3,000 मेगावाट इलेक्ट्रोलाइजर टेंडर के साथ ग्रीन हाइड्रोजन को व्‍यापक पर बढ़ावा दिया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कम्‍पनियां आगे बढ़कर नेतृत्व कर रही हैं और आईओसीएल ने हाल ही में लार्सन एंड टुब्रो को अपनी पानीपत रिफाइनरी के लिए एक ऐतिहासिक 10 केटीपीए ग्रीन हाइड्रोजन टेंडर दिया है। बीपीसीएल, एचपीसीएल और गेल भी बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन परियोजनाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जबकि असम में एनआरएल की ग्रीन हाइड्रोजन इकाई पूर्वोत्तर में प्रथम बनने की ओर अग्रसर है। भारत का प्राकृतिक गैस पाइपलाइन नेटवर्क अब 25,000 किमी से अधिक विस्‍तारित हो चुका है और वर्ष 2030 तक इसके 33,000 किमी तक पहुंचने का लक्ष्य है। रणनीतिक मूल्य निर्धारण सुधार और परिवहन एवं घरेलू क्षेत्रों के लिए ‘नो कट’ श्रेणी में गैस को शामिल करने से आपूर्ति स्थिरता सुनिश्चित हो रही है। गैस उत्पादन वर्ष वर्ष 2020-21 में 28.7 बीसीएम से लगातार बढ़कर वर्ष 2023-24 में 36.4 बीसीएम हो गया है और इसमें और वृद्धि का अनुमान है। किसी अन्य देश ने अपने ‘सिस्टम’ में भारत जितना बड़ा बदलाव नहीं किया है, जैसा कि तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन अधिनियम 2024 से पता चलता है, जिसने हाइब्रिड पट्टों को सक्षम किया है और इससे हाइड्रोकार्बन के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा की अनुमति मिलती है। डीएसएफ क्षेत्र अब न्यूनतम अनुपालन बोझ के साथ सरलीकृत अनुबंधों के अंतर्गत कार्य करते हैं।

पीएम गति शक्ति के माध्यम से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने 1 लाख से अधिक संपत्तियों और पाइपलाइनों का डिजिटल रूप से मानचित्रण किया है। राष्ट्रीय मास्टर प्लान के साथ एकीकरण से मंत्रालयों में वास्तविक समय की परियोजना दृश्यता और तालमेल सुनिश्चित होता है। भारत-नेपाल पाइपलाइन और समृद्धि उपयोगिता गलियारे जैसी प्रमुख परियोजनाओं को मार्ग अनुकूलन और 169 करोड़ रुपए से अधिक की लागत बचत का लाभ मिला है। वहनीयता इसके केंद्र में बनी हुई है। वैश्विक एलपीजी की कीमतों में 58 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद, पीएमयूवाई लाभार्थी प्रति सिलेंडर 553 रुपये का भुगतान करते हैं, जिसे लक्षित सब्सिडी और तेल कंपनियों को क्षतिपूर्ति से समर्थन मिलता है। भारत में ईंधन की कीमतों को उत्पाद शुल्क में कटौती के माध्यम से स्थिर रखा गया है, जिससे नागरिकों को पड़ोसी देशों में देखी जाने वाली अस्थिरता से बचाया जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के परिवर्तनकारी नेतृत्व में ग्यारह वर्ष के पश्‍चात, भारत का ऊर्जा क्षेत्र अब चिंतामुक्‍त क्षेत्र की श्रेणी में आ चुका है। यह अब आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक दूरदर्शिता से पहचाना जाता है। ऊर्जा केवल एक वस्तु नहीं है, यह संप्रभुता, सुरक्षा और सतत विकास की उत्प्रेरक है।

  • लेखक : हरदीप एस. पुरी भारत सरकार में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हैं।

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