नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की हाल की यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब भारत और यूएई के बीच द्विपक्षीय संबंध पहले से ही व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक प्रगाढ़ हो चुके हैं। रणनीतिक भागीदारी की पुष्टि करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति महामहिम शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने अबू धाबी में आईआईटी, दिल्ली के एक परिसर की परिकल्पना की थी- इस निर्णय का रिकॉर्ड समय में साकार होना, दोनों देशों के नेतृत्व की साझा दृष्टि और प्राथमिकताओं का प्रमाण देता है।
नए भारत के नवाचार और विशेषज्ञता के एक उदाहरण के रूप में, संयुक्त अरब अमीरात में आईआईटी, दिल्ली का परिसर शिक्षा-क्षेत्र में भारत-यूएई मित्रता की नयी मिसाल के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। यह संस्थान शैक्षिक उत्कृष्टता, नवाचार, ज्ञान आदान-प्रदान और मानव पूंजी में निवेश आदि के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में दोनों देशों के साझे दृष्टिकोण को दर्शाता है। निस्संदेह, यह आपसी समृद्धि और वैश्विक कल्याण, दोनों ही दृष्टि से ज्ञान की शक्ति का लाभ उठाने के लिए एक नया उदाहरण पेश करेगा।
समग्र परिवर्तन
आईआईटी दिल्ली का अंतर्राष्ट्रीय परिसर नई शिक्षा नीति में परिकल्पित शैक्षणिक संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीयकरण के विकसित होते प्रतिमान को दर्शाता है। राधाकृष्णन समिति की रणनीतिक सिफारिशें, जो शुरू में आईआईटी के अंतर्राष्ट्रीय परिसरों की संकल्पना के लिए गठित की गई थीं, ने आईआईटी दिल्ली और आईआईटी मद्रास (ज़ांज़ीबार में एक परिसर के साथ) जैसे संस्थानों के लिए एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति की परिकल्पना की थी– केवल प्रतिष्ठा में ही नहीं, बल्कि उपस्थिति में भी वैश्विक।
मित्र देशों के साथ भारत की भागीदारी की प्रमुख विशेषता है- द्विपक्षीय प्रतिबद्धता को अंतिम रूप देना तथा विश्वसनीय और समय पर किये जाने वाले कार्यों के माध्यम से इसे पूरा करना। रिकॉर्ड समय में स्थापित किया गया आईआईटी दिल्ली-अबू धाबी परिसर, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार और अबू धाबी शिक्षा एवं ज्ञान विभाग (एडीईके) के आपसी प्रयासों के आकर्षक तालमेल को रेखांकित करता है। 2022 की शुरुआत में दोनों देशों के राजनेताओं के बीच एक समझौता हुआ था। 15 जुलाई, 2023 को एमओयू पर हस्ताक्षर होने से लेकर 29 जनवरी, 2024 को कैंपस के पूरा होने व छात्रों के पहले बैच की कक्षाएं शुरू होने तक, आईआईटी दिल्ली- अबू धाबी ने भारत-यूएई द्विपक्षीय संबंधों में उल्लेखनीय सौहार्द का उदाहरण देते हुए बहुत ही कम समय में काफी लंबी दूरी तय की है।
कई मायनों में, यह समग्र परिवर्तन का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से, भारत ने नालंदा विश्वविद्यालय- “दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय, जहां कई देशों के प्रसिद्ध विद्वान भारत आते थे और अध्ययन करते थे”- के साथ शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण में उत्कृष्टता हासिल की थी। आईआईटी आज अपनी उत्कृष्टता को सीमाओं के पार ले जा रहे हैं और देश को गौरवान्वित कर रहे हैं।
शैक्षणिक उत्कृष्टता और वास्तविक जीवन में उपयुक्तता
आईआईटी दिल्ली के अबू धाबी परिसर का सबसे महत्वपूर्ण अंग शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए उसकी प्रतिबद्धता है। संस्थान के पाठ्यक्रम को क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप कुशलतापूर्वक ढाला गया है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के शिक्षण के साथ-साथ अनुसंधान के क्षेत्र में आईआईटी दिल्ली के अद्वितीय अनुभव का लाभ उठाते हुए अबू धाबी परिसर विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने के साथ ही साथ, उसे वैविध्यपूर्ण बनाते हुए नवीन और क्षेत्र-विशिष्ट कार्यक्रमों का केंद्र बनने की दिशा में प्रयासरत है।
इसका आरंभिक शैक्षणिक कार्यक्रम, ऊर्जा रूपांतरण और स्थिरता में मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी, संस्थान के दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाता है। जलवायु और स्थिरता से जुड़ी अन्य चुनौतियों से निपटने में स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को इस परिवर्तन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में अग्रणी रहने के लिए तैयार करना है। यह पाठ्यक्रम ट्रांजिशन प्रबंधन, नवाचार प्रक्रियाओं और ऊर्जा-स्थिरता अंतर्संबंधों की समझ के साथ तकनीकी ज्ञान को एकीकृत करते हुए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर देता है। इस कार्यक्रम का शुभारंभ संयुक्त अरब अमीरात द्वारा वर्ष 2023 को स्थिरता वर्ष के रूप में मनाए जाने और दुबई में ऐतिहासिक सीओपी 28 सम्मेलन की मेजबानी करने के पश्चात हुआ है। इस कार्यक्रम में अधिकांश छात्र अबू धाबी की प्रमुख तेल और गैस कंपनी एडीएनओसी द्वारा प्रायोजित हैं, जो खुद को नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा रूपांतरण की ओर फिर से उन्मुख करने की इच्छुक है। शिक्षा जगत के साथ उद्योग का यह इंटरफ़ेस इस नवोदित संस्थान के भविष्य के लिए शुभ संकेत है।
आईआईटी दिल्ली अबू धाबी की कक्षाओं में कदम रखने वाले छात्रों का पहला बैच अत्याधुनिक ज्ञान प्राप्त करने वाला बन जाएगा। आईआईटी दिल्ली- अबू धाबी परिसर एआई, डेटा एनालिटिक्स, ऊर्जा और स्थिरता और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रहा है। तेजी से उभरती वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में अनुसंधान के एजेंडे को मेजबान देश की जरूरतों के अनुरूप बनाया जाएगा।
गुणवत्ता आश्वासन और बेंचमार्किंग
गुणवत्ता आश्वासन, राधाकृष्णन समिति द्वारा रेखांकित एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता है, जो आईआईटी दिल्ली-अबू धाबी के लोकाचार में अंतर्निहित है। मान्यता, समय-समय पर पाठ्यक्रम की समीक्षा और संस्थागत मूल्यांकन को नियमित आधिकारिक प्रयोग नहीं माना जाएगा, बल्कि इसे शिक्षा की गुणवत्ता को उच्चतम वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाए रखना सुनिश्चित करने का तंत्र माना जाएगा।मानकीकृत परीक्षणों, शैक्षणिक प्रगति, इंटर्नशिप और प्लेसमेंट के माध्यम से छात्र प्रवेश गुणवत्ता की बेंचमार्किंग ऐसे स्नातक तैयार करने की दिशा में संस्थागत प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जो केवल उत्कृष्टता की अपेक्षाओं को ही पूरा न करते हों,बल्कि उससे कहीं बेहतर हों ।
बदलती हुई दुनिया में नई साझेदारियां
संयुक्त अरब अमीरात की जीवंत राजधानी अबू धाबी, इस नए परिसर के लिए सिर्फ एक स्थल से कहीं अधिक है। यह शिक्षा और नवाचार के इस साहसिक उद्यम में पूर्ण सहयोगी एवं भागीदार रही है। इस तरह का निर्बाध एवं उपयोगी संयुक्त प्रयास भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी के उद्देश्यों एवं दृष्टिकोण के अनुरूप है।
इस परिसर में संस्कृतियों, विचारों और दृष्टिकोणों का अपेक्षित सम्मिलन हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उदाहरण के लिए, इस बात की परिकल्पना की गई है कि स्नातक पाठ्यक्रमों में भारतीय छात्रों को अमीराती छात्रों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के साथ-साथ शामिल किया जाएगा। इसी तरह, आईआईटी दिल्ली द्वारा संयुक्त अरब अमीरात के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संकाय और कर्मचारियों की भर्ती किए जाने की भी उम्मीद है जो अबू धाबी परिसर में विश्वस्तरीय शिक्षण और अनुसंधान कार्यक्रम को विकसित व कार्यान्वित करने हेतु दिल्ली परिसर के संकाय के साथ मिलकर काम करेंगे।
आगे की राह
अबू धाबी में आईआईटी दिल्ली का परिसर स्थापित करने की पीछे भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच की साझेदारी आकांक्षाओं और संभावनाओं से भरी है। यह निश्चित रूप से दो देशों और वहां के लोगों के बीच व्यापक साझेदारी का आधार बनेगा। यह दुनिया के कल्याण के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शैक्षणिक संयुक्त उद्यमों के लिए छात्रों और शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित करके दोनों देशों के परे जाकर नए आयाम जोड़ेगा। अब जबकि आईआईटी-दिल्ली वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति बढ़ाने की दिशा में लगातार अग्रसर है, इसका लक्ष्य मानचित्र पर कोई एक स्थान नहीं, बल्कि साझा वैश्विक समृद्धि के लिए ज्ञान का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना है। अग्रणी भारतीय संस्थानों ने परिपक्वता हासिल कर ली है और अब वे भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन के अनुरूप ‘विश्व मित्र’ के रूप में भारत की छवि को मजबूत करने की दिशा में अपने वैश्विक प्रभाव को और गहरा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।