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देहरादून : प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से उबारकर विकास की राह पर ले गए. उनकी ईमानदारी, नेक नीयत और स्वाभिमानी छवि के चलते विपक्षी पार्टियां भी उन्हें सम्मान देती थीं और आज भी देती हैं. लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपनी सादगी और देशभक्ति के दम पर देश के प्रधानमंत्री बने.
- लाल बहादुर शास्त्री जी कट्टर कांग्रेसी थे जो गाँधी जी की विचारधारा से बहुत अधिक प्रभावित थे।
- शिशु लाल बहादुर अपने पिताजी के निधन के बाद नाना-नानी के यहाँ रहने लगे और बचपन में विषम परिस्थिति में भी पैसे ना होने के कारण दिन में दो बार अपने सिर पर किताबें बांध कर गंगा तैरकर अपने स्कूल में शिक्षा लेने जाते थे।
- श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का असली नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। ‘शास्त्री’ की उपाधि उन्हें काशी विद्यापीठ से स्नातक की शिक्षा पूर्ण करने के बाद मिली जिसके बाद वह अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे।
- शास्त्री जी ने अपने विवाह के समय दहेज प्रथा के विरुद्ध जाकर मात्र खादी का कपड़ा और चरखा ही स्वीकार किया।
- शास्त्री जी लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित लोक सेवक मंडल के भी आजीवन सदस्य रहे थे जिसे सर्वेंट्स ऑफ़ द पीपुल सोसाइटी के रूप में भी जाना जाता था |
- जब वह ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर बने तो सबसे पहले उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडक्टर लाने की शुरुआत की।
- शास्त्री जी ने ही देश की आजादी के बाद अपने कई मंत्रालयों में कार्यकाल के दौरान परिवहन में महिला कंडक्टर और महिला सीट का प्रावधान, भ्रष्टाचार निरोधक समिति का प्रावधान, रेलवे में थर्ड क्लास का प्रावधान जैसे कई प्रावधान बनाये थे।
- शास्त्री जी ने अपने प्रधानमन्त्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने हरित और श्वेत क्रांति को प्रोत्साहित और बढ़ावा देने का कार्य किया और गुजरात के आनंद में स्थित अमूल दूध सहकारी के साथ मिलकर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की।
- शास्त्री जी बहुत सुलझे हुए और भावनात्मक व्यक्तित्व के मालिक थे। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उन्होंने लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार का सुझाव दिया जिसे बहुत पसंद किया गया।
- शास्त्री जी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरांन ही वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सेना के जवानों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया और उनका ये नारा आज भी बहुत प्रचलित है।
- शास्त्री जी की सूझबूझ से ही पाकिस्तान भारत से वर्ष 1965 में युद्ध में बुरी तरह परास्त हो गया जो कि सोचता था कि वर्ष 1962 में मिली चीन की हार से भारत कमजोर हो गया होगा।
- शास्त्री जी ने पाकिस्तान से युद्ध के बाद देश में हो रही अनाज की कमी और अमेरिका द्वारा भारत को अनाज ना देने की धमकी के बाद सभी देशवासियों से सप्ताह में 1 दिन का खाना 1 वक्त के लिए छोड़ने की अपील की थी। हमारे परिवार ने भी तब सोमवार की शाम को खाना खाना बन्द कर दिया था।
- शास्त्री जी की उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुई आकस्मिक मृत्यु आजतक एक रहस्य है जहाँ वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के साथ ताशकंद शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने गये थे। जहाँ एक ओर उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया वही उनके परिवार वाले उनकी जहर देकर हत्या करने की बात कहते है जो कि आज तक अनसुलझा है।
- शास्त्री जी अपने जीवन में बहुत सरल, ईमानदार और साधारण व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। वे फटे कपड़ों से बाद में रूमाल बनवाते थे औऱ फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहनते थे। किसी भी प्रोग्राम में VVIP की तरह नहीं, बल्कि आम आदमी की तरह जाना पसंद करते थे और दोपहर के खाने में वो अक्सर सब्जी-रोटी खाते थे। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कभी अपने लिए कार नहीं रखी थी।
- बात उस समय की है जब भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हुआ करते थे। एक दिन लाल बहादुर शास्त्री जी एक साड़ी के शोरूम पर पहुंचे और बोले मुझे अपनी पत्नी के लिए साड़ी चाहिए, यह देख शौरूम का मालिक बहुत खुश हो गया की उसके शोरूम पर भारत के प्रधानमंत्री आये हैं और वो एक से एक बेहतरीन साड़ी शास्त्री जी को दिखाने लगा।
- जब शास्त्री जी ने उन साड़ियों का कीमत सुनी तो वो बोले यह बहुत महँगी है, कृपया इससे कम कीमत की साड़ी दिखाओ। दुकान के मालिक ने उन्हें और साड़ियां दिखाई लेकिन शास्त्री जी ने उनकी कीमत भी ज्यादा लगी।
- शोरूम का मालिक बोला, सर आप इस देश के प्रधान मंत्री हैं ; आप महँगी से महँगी साड़ी पसंद कर ले – यह हमारी तरफ से आपके लिए एक छोटा सा उपहार होगा।
- शोरूम के मालिक की बात सुन कर लाल बहादुर शास्त्री जी बोले ‘भले ही मैं इस देश का प्रधानमंत्री हूँ, पर में उतनी ही कीमत का सामान लूंगा, जितनी कीमत में चुका सकूँ।’
- भारत की आजादी के दौरान चल रहे असहयोग आंदोलन में उनको जेल भी हुई जबकि उस समय वो 17 वर्ष के थे। हालाँकि नाबालिग होने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया था। लेकिन उसके बाद उन्होने भी वो आज़ादी के लिए कई बार जेल गए। वो अपने जीवन काल में कुल मिलकर 9 वर्ष तक जेल में रहे।
- शास्त्री जी जब जेल में थे तब उनकी पत्नी उसके मिलने गई और छुपकर उनके लिए आम ले आईं। यह देख शास्त्री जी बहुत नाराज़ हुए। क्योंकि वो जानते थे जेल में बाहर की चीज़े लगा कानून के खिलाफ है और वो किसी भी तरह कानून का नियमों का उलंघन नहीं करता चाहते थे।
- जब वे केन्द्र में रेलवे मिनिस्टर थे तो एक रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था।
- एक बार मन्त्री के रूप में उन्हें विदेश जाना था तो उनके पास अच्छा कोट नहीं था, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनको एक कोट प्रदान किया था।
- सादगी के पर्याय ऐसे प्रधानमंत्री से हमें अपने जीवन को सरल और स्वाभाविक रखने हेतु प्रेरणा लेनी चाहिए।
- भारत रत्न शास्त्री जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि!!