नई दिल्ली : दूरगामी प्रभाव वाली एक ऐतिहासिक पहल के रूप में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की बायोई3 (अर्थव्यवस्था, रोजगार और पर्यावरण के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति को मंजूरी दे दी है। इस नीति का उद्देश्य स्वच्छ, हरित, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत के लिए उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देना है। यह नीति पूरी दुनिया के भविष्य के आर्थिक विकास के शुरुआती मार्गदर्शकों में से एक के रूप में भारत के लिए वैश्विक परिदृश्य में अग्रणी भूमिका सुनिश्चित करेगी।
भौतिक उपभोग, अत्यधिक संसाधन उपयोग और अपशिष्ट उत्पादन के असंवहनीय प्रारूप ने विभिन्न वैश्विक आपदाओं को जन्म दिया है, जैसे जंगल की आग, ग्लेशियरों का पिघलना और जैव विविधता में कमी आदि। भारत को ‘हरित विकास‘ के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ाने की राष्ट्रीय प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए, एकीकृत बायोई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति जलवायु परिवर्तन, घटते गैर-नवीकरणीय संसाधनों और असंवहनीय अपशिष्ट उत्पादन की चुनौतीपूर्ण पृष्ठभूमि में, सतत विकास की दिशा में एक सकारात्मक और निर्णायक कदम है। इस नीति का एक प्रमुख उद्देश्य रसायन आधारित उद्योगों को अधिक स्थायी जैव-आधारित औद्योगिक मॉडल में परिवर्तित करना है। यह चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा, ताकि नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। इसके लिए यह जैव-आधारित उत्पादों के उत्पादन के लिए माइक्रोबियल सेल कारखानों द्वारा बायोमास, लैंडफिल, ग्रीन हाउस गैसों जैसे अपशिष्ट के उपयोग को प्रोत्साहित करेगा।
इसके अलावा, बायोई3 नीति भारत की जैव अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने, जैव-आधारित उत्पादों के पैमाने का विस्तार करने और व्यावसायीकरण की सुविधा प्रदान करने; अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा कम करने, इनका पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण करने; भारत के अत्यधिक कुशल कार्यबल के समूह का विस्तार करने; रोजगार सृजन में तेजी लाने तथा उद्यमिता की गति को तेज करने के लिए अभिनव समाधान तैयार करेगी। नीति की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं: 1) उच्च मूल्य वाले जैव-आधारित रसायन, बायोपॉलिमर और एंजाइम; स्मार्ट प्रोटीन और फंक्शनल फ़ूड; सटीक जैव चिकित्सा; जलवायु अनुकूल कृषि; कार्बन स्तर में कमी और इसका उपयोग; तथा समुद्री एवं अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे विषयगत क्षेत्रों में स्वदेशी अनुसंधान और विकास-केंद्रित उद्यमिता को प्रोत्साहन और समर्थन; 2) जैव विनिर्माण सुविधाएं, जैव फाउंड्री क्लस्टर और जैव-कृत्रिम बुद्धिमत्ता (बायो-एआई) हब की स्थापना के जरिये प्रौद्योगिकी विकास और व्यावसायीकरण में तेजी; 3); नैतिक और जैव सुरक्षा विचार पर जोर देते हुए आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के पुनरुत्पादन मॉडल को प्राथमिकता देना; 4) वैश्विक मानकों के अनुरूप नियामक सुधारों का सामंजस्य।
भारत ने पिछले दशक में मजबूत आर्थिक विकास का प्रदर्शन किया है। भारत में चौथी औद्योगिक क्रांति के वैश्विक अग्रणी देशों में से एक होने की अद्भुत क्षमता है। हमारी जैव अर्थव्यवस्था 2014 के 10 बिलियन डॉलर से 13 गुना बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक की हो गई है। 2030 तक इसके 300 बिलियन डॉलर के बाजार मूल्य तक पहुंचने की उम्मीद है। विभिन्न क्षेत्रों में बायोई3 नीति के कार्यान्वयन से देश की जैव अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिलने की संभावना है, साथ ही ‘हरित विकास’ को प्रोत्साहन मिलेगा। देश की उच्च प्रदर्शन वाली जैव विनिर्माण पहलों को बढ़ावा देने से उभरती प्रौद्योगिकियां और नवाचार सामने आयेंगे, जिनका लाभ उठाते हुए जैव अर्थव्यवस्था की आधारशिला रखी जाएगी। जैव विनिर्माण ‘मेक इन इंडिया’ पहल का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनने के लिए तैयार है और यह 21वीं सदी की मांगों को पूरा करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण प्रदान करेगा। एक बहु-विषयक प्रयास के रूप में, इसमें मानव कोशिकाओं सहित सूक्ष्मजीवों, पौधों और पशु कोशिकाओं की क्षमता को उजागर करने की शक्ति है, ताकि न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन के साथ लागत प्रभावी तरीके से जैव-आधारित उत्पाद विकसित किए जा सकें।
यह परिकल्पना की गई है कि जैव-विनिर्माण हब केंद्रीकृत सुविधाओं के रूप में काम करेंगे, जो उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों और सहयोगी प्रयासों के माध्यम से जैव-आधारित उत्पादों के उत्पादन, विकास और व्यावसायीकरण को गति प्रदान करेंगे। इससे एक ऐसे समुदाय का निर्माण होगा, जहां जैव-विनिर्माण प्रक्रियाओं के पैमाने, स्थायित्व और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए संसाधन, विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी साझा की जा सकती है। ये जैव-विनिर्माण हब, जैव-आधारित उत्पादों के ‘प्रयोगशाला-से-प्रारंभिक विनिर्माण’ (लैब-टू-पायलट) और ‘पूर्व-व्यावसायिक पैमाने’ के विनिर्माण के बीच के अंतर को दूर करेंगे। स्टार्ट-अप इस प्रक्रिया में अभिनव विचारों को लाकर और विकसित करके तथा उन्हें लघु एवं मध्यम आकार के उद्यम (एसएमई) बनाकर और स्थापित निर्माता बनने में सहयोग करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।
बायोफाउंड्री का तात्पर्य है, उन्नत क्लस्टरों के निर्माण, ताकि जैविक इंजीनियरिंग प्रक्रियाओं को पैमाने के अनुरूप- प्रारंभिक डिजाइन और ‘परीक्षण चरणों से लेकर पायलट’ तथा ‘पूर्व-व्यावसायिक उत्पादन’ तक – तैयार किया जा सके। विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए एमआरएनए-आधारित टीकों और प्रोटीन का बड़े पैमाने पर निर्माण कुछ सराहनीय उदाहरण हैं, जिनके लिए बायोफाउंड्री मूल्यवान हो सकती हैं। ये क्लस्टर मानकीकृत और स्वचालित प्रक्रियाओं का उपयोग करके जैविक प्रणालियों और जीवों के डिजाइन, निर्माण एवं परीक्षण में विशेषज्ञता प्राप्त करेंगे।
बायो-एआई हब अनुसंधान एवं विकास में एआई के एकीकरण को प्रोत्साहित करने और प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए एक केंद्र बिंदु के रूप में काम करेंगे। एआई और मशीन लर्निंग का उपयोग करके, ये बायो-एआई हब बड़े पैमाने पर जैविक डेटा के एकीकरण, भंडारण और विश्लेषण के लिए जैव प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता, अत्याधुनिक अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स सहायता प्रदान करेंगे। विभिन्न विषयों (उदाहरण के लिए, जीव विज्ञान, महामारी विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान, इंजीनियरिंग, डेटा विज्ञान) के विशेषज्ञों के लिए इन संसाधनों को सुलभ बनाने से अभिनव जैव-आधारित अंतिम उत्पादों के निर्माण की सुविधा मिलेगी- चाहे वह जीन थेरेपी की एक नई किस्म हो, या एक नया खाद्य प्रसंस्करण विकल्प हो।
इन समन्वित पहलों के माध्यम से, बायोई3 नीति, विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में, रोजगार सृजन में वृद्धि लाएगी, जहां जैव विनिर्माण हब स्थापित करने का प्रस्ताव है, क्योंकि ये स्थान बायोमास स्रोतों के निकट स्थित हैं। भारत की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार में निवेश करके, यह व्यापक नीति राष्ट्र के ‘विकसित भारत’ के संकल्प में योगदान देगी। यह नीति एक बेंचमार्क के रूप में काम करेगी तथा इस बात को दर्शाएगी कि एक प्रभावी विज्ञान नीति राष्ट्र निर्माण और विकास में सक्रिय रूप से योगदान दे सकती है।
- लेखक : डॉ. जितेंद्र सिंह, केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)