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कोटद्वार/हरियाणा : निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के अंतिम दिन अपने अमृतमयी प्रवचनों में परमात्मा के असीम स्वभाव और उसके साथ जुड़ने के द्वारा जीवन के हर पहलू में सकारात्मक विस्तार की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब हम ब्रह्मज्ञान के माध्यम से परमात्मा से जुड़ते हैं, तो हमारे जीवन में असीमित शांति, प्रेम और सुख का अनुभव होता है।
तीन दिवसीय इस भव्य समागम में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए और दिव्य शिक्षा का लाभ उठाया। समागम के तीसरे दिन का प्रमुख आकर्षण बहुभाषी कवि दरबार रहा, जिसमें 19 देशों के कवियों ने हिंदी, पंजाबी, मुल्तानी, हरियाणवी और अंग्रेजी में प्रेरणादायक रचनाओं की प्रस्तुति दी। साथ ही, बाल और महिला कवि दरबार ने भी अपनी रचनाओं के माध्यम से दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
समागम परिसर में श्रद्धालुओं के लिए विशेष लंगर सेवा का आयोजन किया गया, जिसमें 20 हजार से अधिक संतों ने एक साथ भोजन किया। लंगर में विशेष रूप से दिव्यांग और वयोवृद्धों के लिए व्यवस्था की गई और पर्यावरण के प्रति जागरूकता रखते हुए भोजन स्टील की थालियों में परोसा गया। इस आयोजन ने ‘सारा संसार एक परिवार’ का संदेश दिया और समागम को भक्ति और एकता के भाव से भर दिया।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने अपने प्रवचन में भेदभाव और संकीर्णताओं को नकारते हुए समाज में समदृष्टि और समानता की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद जीवन में कोई भी भेदभाव नहीं रहता और हम सभी मानवता की सेवा में अपने कर्तव्यों को निभाते हैं।
समागम के समापन पर समागम समिति के समन्वयक, जोगिंदर सुखीजा जी ने सतगुरु माता जी और निरंकारी राजपिता जी का आभार व्यक्त करते हुए सभी सरकारी विभागों का धन्यवाद किया जिन्होंने इस पवित्र आयोजन में योगदान दिया। समागम का भक्तिभावपूर्ण वातावरण में सफल समापन हुआ और श्रद्धालु इस दिव्य अवसर की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने के लिए अपने-अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान कर गए।