कोटद्वार : लैंसडाउन विधायक दिलीप रावत अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा है, जो चर्चाओं में है। सीएम धामी की सख्ती के बाद 17 कर्मचारी और अधिकारियों पर कार्रवाई की गई। इनमें वन आरक्षियों को सबसे ज्यादा सस्पेंड किया गया है। पहाड़ समाचार ने इस कार्रवाई पर सवाल खड़े किए थे। आब लैंसडाउन विधायक ने भी बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है।
विधायक की चिट्ठी
मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि उत्तराखण्ड में फैली भीषण आग को नियंत्रित ना करने के संबंध में कुछ निचले कर्मचारियों को लापरवाही बरतने में निलंबित किया गया है, मेरी व्यक्तिगत राय है कि निचले कर्मचारियों का निलंबन करने से पहले यह ध्यान देना जरूरी है कि क्या अग्नि सुरक्षा हेतु निचले स्तर पर पूरे कर्मचारी नियुक्त है? क्या निचले स्तर पर अग्नि बुझाने हेतु पूरे संसाधन उपल्बध हैं?
घरातल पर मुझे यह भी अनुभव हुआ है कि फायर सीजन में रखे जाने वाले फायर वाचरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। यदि होती भी है तो वह कागजों तक ही सीमित रहती है। निचले स्तरों पर फायर वाचरों हेतु उनकी सुरुक्षा हेतु उचित संसाधन नहीं रहते है, और ना ही जंगलों में आग बुझाने के दौरान घटना स्थान पर उनके लिए भोजन आदि की उचित व्यवस्था रहती है।
महोदय, यह भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए कि ब्रिटिश काल में वनों के बीच में अग्नि नियंत्रण हेतु फायर लाईन बनाई गयी थी जो कि आज समय में कहीं दिखायी नहीं देती है, जबकि वनों में आग लगने की स्थिति में यह फायर लाईन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। अतः उक्त फायर लाईन पर भी कार्य किया जाना चाहिए।
महोदय, वर्तमान में कड़े वन अधिनियमों के कारण स्थानिय जनता वनों से दूर होती जा रही है. और अनके मन में यह भाव पैदा हो गया है कि यह वन हमारे नहीं है, और इन वनों के कारण हमें जन सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है। जबकि ब्रिटिश काल में जंगलों की सुरक्षा जन सहभागिता के आधार पर की जाती थी। परन्तु उक्त व्यवस्थाओं से जनता का वनों के प्रति मोह भंग हो गया है। अतः इन बातों पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
महोदय, मैने इन्हीं सारी समस्याओं के संबंध में आपसे एवं विधानसभा अध्यक्ष से एक विशेष सत्र आहुत की जाने की मांग की थी। ताकी उक्त सारी समस्याओं पर चिंतन एवं मनन किया जा सके। महोदय, यह भी संज्ञान में आया है कि संबंधी वनाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी, क्षेत्रीय वनाधिकारी केवल
चौकियों तक ही निरीक्षण कर अपनी इतिश्री समझ लेते है। महोदय, संज्ञान में यह भी आया है कि जंगलों में नियुक्त दैनिक वेतन कर्मी एवं फायर वाचरों को नियमित वेतन नहीं मिलता है। जिस कारण व्यवस्था भी चरमरा जाती है।
महोदय, वन विभाग में ऊपरी स्तर पर कई बड़े अधिकारी नियुक्त हैं। परन्तु वे अपने कक्षों में बैठ कर ही वन विभाग की सेवा करते है। यह अच्छा होता कि उक्त अग्नि कांड हेतु उब्ध सार पर अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होती तो अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का बोध होता।
अतः आपसे निवेदन है कि निचले स्तर के कर्मचारियों के निलंबन से पूर्व उनकी परेशानियों को भलीभाँति समझा जाए एवं वनाग्नि हेतु गंभीरता से विचार किया जाए।