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हरिद्वार : ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एसोसिएशन का कार्यात्मक एकीकरण को लेकर विकास भवन में अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार एवं धरना जारी। ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों का ग्राम विकास अधिकारियों के साथ कार्यात्मक एकीकरण किये जाने के विरोध में शनिवार को ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एसोसिएशन ने विकास भवन हरिद्वार में कार्यात्मक एकीकरण के शासनादेश को वापस लेने को लेकर धरना प्रदर्शन किया है। बता दें कि ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एसोसिएशन की ओर से कार्यात्मक एकीकरण के विरोध में विकास भवन परिसर में अनिश्चित कालीन कार्यबहिष्कार से साथ धरना दिया जा रहा है। ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों का ग्राम विकास अधिकारियों के पदों पर कार्यात्मक एकीकरण के लिए जारी शासनादेश को निरस्त किये जाने की मांग की है। एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष विनीत गौड़ का कहना है कि शासन को चाहिए की कार्यात्मक एकीकरण के बजाय पंचायत राज विभाग और खंड विकास अधिकारी कार्यालय का एकीकरण किया जाए ताकि उनके संवर्ग को इसका सीधा लाभ मिल सके।
एकीकरण के नाम पर किसी एक विभाग को सौंपी पंचायतें।
जहाँ कई राज्यो में पंचायतों के वास्तविक विकास हेतु 29 विषयो को पंचायतो के अधीन रखे गए है एवम सभी 29 विषयों पर नीति निर्माण से लेकर ग्राम पंचायतों के विकास हेतु सारे निर्णय ग्राम स्तर पर स्थापित पंचायतराज व्यवस्था के अधीन लिए जाते है इसके उलट उत्तराखंड में एकीकरण के नाम पर पंचायतो का अपरोक्ष नियंत्रण ग्राम्य विकास विभाग के खंड विकास अधिकारी को सौंप दिया गया है, विदित है कि सम्पूर्ण देश में पंचायत राज व्यवस्था 73वें संविधान संशोधन से लागू है पंचायतें संवैधानिक संस्था के रूप में विभिन्न स्तरों पर कार्य करती है, उत्तराखण्ड में भी वर्तमान में त्रिस्तरीय पंचायतें काम करती हैं यथा जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत एवम ग्राम पंचायत , तीनो ही संवैधानिक सस्थाएं अपने आप में स्वतन्त्र रूप से कार्य करती है। ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत विकास अधिकारी सचिव के रूप में कार्य करता हैं जबकि क्षेत्र पंचायत स्तर पर किसी दूसरे यानी ग्राम्य विकास के खंड विकास अधिकारी को सचिव का दायित्व सौंपा गया है जो को तर्कसंगत नही लगता।
तर्कसंगत तो यह होता कि खंड स्तर पर भी पंचायत राज विभाग के ही कार्मिक को सचिव का दायित्व सौंपा जाता जिससे कि पूरी व्यवस्था पर निगरानी एवं योजनाओं का संचालन रेखीय पंक्क्ति में होता, सरकार द्वारा यह सब न कर कार्यात्मक एकीकरण के नाम पर निचले स्तर पर ग्राम पंचायतों के अधिकार सीमित करने का प्रयास किया गया है। विदित है कि पंचायत राज एक संवैधानिक सस्था है जबकि ग्राम्य विकास एक व्यवस्था है, ग्राम्य विकास का अस्तित्व केवल योजनाओ पर निर्भर हैं वर्तमान में ग्राम्य विकास विभाग के पास मनरेगा, आवास एवम nrlm कार्यक्रम ही संचालित हो रहे हैं इन योजनाओं के पूर्ण हो जाने के बाद विभाग के अस्तित्व पर ही संकट छाने के सम्भावनाएं है जैसा कि हिमाचल प्रदेश में देख गया है जहाँ ग्राम्य विकास को मृत संवर्ग घोषित कर सम्पूर्ण व्यवस्था को पंचायतराज व्यवस्था के अधीन कर पंचयतों को सशक्त बनाने का कार्य किया गया, यही व्यवस्था केरल में भी देखने को मिलती है।