इंदौर : इंदौर के हृदय स्थल राजवाड़ा में एक ऐसा प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर है, जहां दीपावली के अवसर पर लाखों भक्तों की भीड़ अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पूजा-अर्चना करती है। यहां महालक्ष्मी के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार, 1833 में इंदौर के राजा हरि राव होलकर ने पुराने मकान में माताजी की मूर्ति की स्थापना की थी जिसके बाद से ही होलकर परिवार नवरात्रि और दीपावली पर दर्शन करने यहां लगातार आता था। बताया जाता है कि होलकर राजा खजाने को खोलने के पहले महालक्ष्मी के दर्शन करते थे, जिससे राज परिवार को कभी भी लक्ष्मी की कमी महसूस नहीं हुई।
इस मंदिर में दीपावली पर भक्त पीले चावल देकर माता को आमंत्रित कर घर ले जाने के लिए मनोकामना करते है। भक्त पीले चावल यहां रखते हैं और उनसे कहा जाता है कि हमारे घर में पधारें और सुख समृद्धि लाएं। हमारे अच्छे दिन बीतें हम भी माताजी से यही कामना करते हैं। सभी भक्तों के दिन समृद्धि से बीतें और उनका आशीर्वाद बना रहे। भक्तों द्वारा जो चावल चढ़ाए जाते हैं उनमें से कुछ चावल मन्नत के रूप में भक्त लेकर जाते हैं। उसे घर की तिजोरी और दुकान के गल्ले में रखते हैं ताकि वर्षभर बरक्कत हो सके। यहां से ले गए चावल को भक्त अपने पूरे घर में छिड़क कर अभिमंत्रित भी करते हैं। यह सिलसिला मंदिर की स्थापना के बाद से ही अब तक जारी है।
पुजारी के अनुसार, इस मंदिर में अब तक तीन बार हादसे हो चुके हैं लेकिन हर बार माताजी को आंच तक नहीं आई है। पहली बार 1928 में मंदिर कच्ची हालत में था धराशाई हो गया। उस वक्त लकड़ियों के पाठ कुछ इस तरह गिरे कि लकड़ियां माताजी का कवच बन गई और मां को खरोंच तक नहीं आई। इसके बाद 1972 में मंदिर में आग लग गई थी, तब पूरा मंदिर जलकर खाक हो गया था लेकिन माताजी को आग कोई क्षति नहीं। पहुंचा सकी। ऐसे ही तीसरा हादसा वर्ष 2011 में हुआ जब मंदिर की छत से प्लास्टर गिरा तब भी न तो मूर्ति को कुछ हुआ और न ही पुजारी को खरोंच आई। माताजी का चमत्कार हैं।